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पहले सर्जरी हुई हो तब भी कर सकते हैं नेत्र दान, जानिए कॉर्निया से जुड़े तथ्य

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कई लोगों को यह भ्रम होता है कि हमारे रिश्तेदार ने तो पहले से ही आंखों का ऑपरेशन करवा रखा था तो अब उनकी आंखें दान में नहीं दी जा सकेंगी। हमारे देश में लाखों लोग दान में मिलने वाली नेत्रज्योति की राह तकते रह जाते हैं और परिजनों की वजह से मृतक के शरीर से नेत्र (कॉर्निया) प्राप्त करना असंभव हो जाता है। याद रखें कि आंखों के ऑपरेशन हो चुकने के बाद भी नेत्रदान कराया जा सकता है।

हमारे देश में कई युवा ऐसे हैं जो कॉर्निया में किसी खराबी के कारण अंधत्व भुगत रहे हैं और उनकी नेत्रज्योति दान में प्राप्त कॉर्निया के प्रत्यारोपण से लौटाई जा सकती है। कई बार आंखों में किसी वजह से चोट लगने के कारण अथवा संक्रमण के कारण कॉर्निया खराब हो जाता है। इसके अलावा कुपोषण के चलते विटामिन ए की कमी अथवा विरासत में प्राप्त बीमारियों की वजह से भी कॉर्निया खराब हो जाता है और मरीज की देखने की शक्ति खत्म हो जाती है। कई बार गांवों में प्राथमिक उपचार के तौर पर दिए गए ड्राप्स का गलत इस्तेमाल भी मुश्किल खड़ी कर सकता है।

क्या होता है कॉर्निया

कॉर्निया आंखों का सबसे आगे वाला हिस्सा होता है जो एकदम स्वच्छ और निर्मल होता है। किसी भी वस्तु को देखने के लिए इसी के माध्यम से फोकस किया जाता है। यह कॉर्निया प्रकृति की ओर से बनाया जाता है। किसी बीमारी, संक्रमण अथवा किसी अन्य कारण से जब कॉर्निया धुंधला हो जाता है तो मरीज को दिखना बंद हो जाता है। इसका इलाज केवल कॉर्निया प्रत्यारोपण से ही हो सकता है। संक्रमण के कारण कॉर्निया गल जाता है और आंख फूटने तक का खतरा रहता है।

नेत्रदान करने वालों की भारी कमी है

देश में यद्यपि नेत्रदान के प्रति लोगों में जागरूकता आई है लेकिन अभी भी दान में मिलने वाले कॉर्निया की भारी कमी है। लोग अक्सर इसे लेकर आगे नहीं आते। नेत्रदान में कॉर्निया तथा उसके आसपास का हिस्सा जिसे स्क्लेरा कहा जाता है वह प्राप्त किया जाता है।

मृत देह के प्रति मोह

समाज में नेत्रदान के प्रति अब भी भ्रांतियां एवं गलत मान्यताएं व्याप्त हैं। मान्यता यह भी है कि मृतक की देह से कोई हिस्सा लिया गया या कॉर्निया लिया गया तो अगले जन्म में वह बिना आंख के पैदा होगा। ये सब झूठी मान्यताएं हैं जिनकी वजह से पर्याप्त संख्या में नेत्र दान में कॉर्निया प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं।

इतनी बड़ी है संख्या

कॉर्निया की वजह से अंधत्व का अभिशाप झेल रहे करीब 8.4 मिलियन भारतीय कॉर्निया प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे हैं। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक हर साल लगभग 30 हजार नेत्र प्रत्यारोपण होते हैं। यह संख्या बहुत ही कम है। अंधत्व की समस्या के निवारण के लिए कम से कम हर साल 1 लाख से अधिक लोगों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट किए जाने चाहिए। देश में इसके लिए पर्याप्त संख्या में संसाधन एवं तकनीकी क्षमता मौजूद है। मुख्य समस्या केवल दान में हासिल होने वाले कॉर्निया की कम संख्या ही है।

एलर्जी के कारण खराब होने वाला कॉर्निया

बच्चों में खासकर 18 साल की उम्र से पहले आंखों में एलर्जी की वजह से खुजली होने के कारण चश्मे का नंबर आ जाता है। कई केसेस में सिलेंड्रिकल नंबर आ जाते हैं। ज्यादा खुजली करने की वजह से कॉर्निया पतला और बेलनाकार होने लगता है। इस बीमारी को केरेटोकोनस कहते हैं। इसको और बढ़ने से रोकने के लिए ऑपरेशन द्वारा कॉर्निया को कड़क किया जा सकता है।

अगर आकार काफी खराब हो जाए तो कॉर्निया बदला जा सकता है। इस प्रक्रिया को लेगलर केरेटोप्लास्टी कहा जाता है। इसमें मरीज के कॉर्निया के अंदरूनी हिस्से को बचाते हुए बाहरी पतले और खराब हिस्से को बदल दिया जाता है

कब हासिल करें मृत देह से कॉर्निया

मृतक की देह से मृत्यु के कम से कम छह घंटों के अंदर कॉर्निया प्राप्त कर लेना चाहिए। मृतक की पलकों को इस

अवधि में बंद ही रखना चाहिए। इसी के साथ एक गीला कपड़ा आंखों पर डाल देना चाहिए। परिजनों द्वारा नेत्रदान की सहमति देने पर सबसे नजदीकी आई बैंक को बुला लेना चाहिए। आई बैंक से आने वाली टीम चंद मिनटों में नेत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया संपन्न कर लेती है। याद रखें की मोतियाबिंद ज्यादा पक जाने या कड़क हो जाने के बाद

सर्जरी की जटिलता बढ़ जाती है। साथ ही सक्रिय सेल्स की संख्या भी कम हो जाती है। इन कारणों की वजह से कॉर्निया में सूजन आ जाती है और उसकी पारदर्शिता कम हो जाती है।

इससे निपटने के लिए कॉर्निया एवं उसके साथ के हिस्से के सेल्स को अति सूक्ष्म तरीके से मरीज की आंखों में प्रत्यारोपित किया जाता है। इस प्रक्रिया को एंडोथीलियल कैराटोप्लास्टी कहा जाता है।

कृत्रिम कॉर्निया पर हो रहा है काम

देश के अग्रणी हॉस्पिटल एम्स में बीते 2 सालों में 10 मरीजों पर कृत्रिम कॉर्निया का सफलता पूर्वक प्रत्यारोपण किया गया है। ये कॉर्निया बायो इंजीनियर्ड कोलाजेन से निर्मित किए गए हैं। शोध कर्ताओं का मानना है कि कृत्रिम कॉर्निया का प्रत्यारोपण आसान है।

समाज आगे आए

नेत्रदान के प्रति समाज में जो भी कुरीतियां और भ्रांतियां फैली हुई हैं उनका निवारण हर स्तर पर किया जाना चाहिए। हर उम्र के लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक करना चाहिए।

एलर्जी के कारण खराब होने वाला कॉर्निया

बच्चों में खासकर 18 साल की उम्र से पहले आंखों में एलर्जी की वजह से खुजली होने के कारण चश्मे का नंबर आ जाता है। कई केसेस में सिलेंड्रिकल नंबर आ जाते हैं। ज्यादा खुजली करने की वजह से कॉर्निया पतला और बेलनाकार होने लगता है। इस बीमारी को केरेटोकोनस कहते हैं। इसको और बढ़ने से रोकने के लिए ऑपरेशन

द्वारा कॉर्निया को कड़क किया जा सकता है।

अगर आकार काफी खराब हो जाए तो कॉर्निया बदला जा सकता है। इस प्रक्रिया को लेगलर केरेटोप्लास्टी कहा जाता है। इसमें मरीज के कॉर्निया के अंदरूनी हिस्से को बचाते हुए बाहरी पतले और खराब हिस्से को बदल दिया जाता है।