मशहूर बिस्किट Parle G के जरिए हर परिवार में एक खास पहचान बनाने वाली कंपनी Parle बुरे दौर से गुजर रही है. हालात इतने बिगड़ गए हैं कि Parle आने वाले दिनों में 10,000 कर्मचारियों की छंटनी कर सकती है. लेकिन सवाल है कि करीब 90 साल पुरानी कंपनी Parle के बुरे दिन क्यों आ गए हैं और इसके लिए कंपनी सरकार से क्या उम्मीद करती है.
बातचीत के दौरान मयंक शाह ने बताया कि यह पहला मौका है जब Parle की मांग में लगातार गिरावट देखी जा रही है. इससे निपटने के लिए हमने हर संभव प्रयास किए हैं लेकिन कोई भी कारण को समझने में सक्षम नहीं हैं.
मयंक शाह के मुताबिक हमने मार्केट में प्रोडक्ट को पुश करने की कोशिश की. इसके अलावा प्रोडक्ट के बारे में कस्टमर्स को भी समझाने का प्रयास किया. लेकिन टैक्स बढ़ोतरी और आर्थिक सुस्ती ने बिक्री को प्रभावित किया है. उन्होंने आगे बताया कि कंपनी अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही है. शाह के मुताबिक कस्टमर किसी अच्छे उत्पाद के लिए अधिक भुगतान करने को बाध्य नहीं है, लेकिन अर्थव्यवस्था में धीमी गति से गिरावट और जीएसटी की वृद्धि ने हमें प्रभावित किया है.
हम एहसान नहीं मांग रहे
Parle की इतनी बुरी हालत क्यों हुई? सवाल के जवाब में मयंक शाह ने कहा, ”जाहिर है, ग्रामीण भावनाएं प्रभावित हुई हैं. मतलब यह कि ग्रामीण इलाके में बिक्री में गिरावट देखने को मिली है. हम दूसरों की तरह सरकार से अहसान नहीं मांग रहे हैं.” शाह का कहना है कि सिस्टम को कारोबार के लिए सरल बनाना चाहिए. इसमें अहसान या मेहरबानी जैसा कुछ नहीं है.
जीएसटी की वजह से हालात बिगड़े
शाह ने इस दौरान जीएसटी लागू होने के बाद बिगड़े हालात का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, ”बिस्किट को मुख्य तौर पर दो कैटेगरी (100 रुपये प्रति किलो से ज्यादा और कम) में बांटा गया है. GST लागू होने से पहले 100 रुपये प्रति किलो से कम कीमत वाले बिस्किट पर 12 फीसदी टैक्स लगाया जाता था. लेकिन GST लागू होने के बाद हालात बदल गए और सभी बिस्किटों को 18 फीसदी स्लैब में डाल दिया. यह ठीक नहीं था. इसका असर ये हुआ कि बिस्किट कंपनियों को इनके दाम बढ़ाने पड़े और इस वजह से बिक्री में गिरावट आ गई है. शाह के मुताबिक आज हम लगभग 10 कंपनियों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करीब 1 लाख लोगों को नौकरी दे रहे हैं.
Parle में छंटनी के बारे में सवाल पर मयंक शाह ने कहा कि जब डिमांड में लंबे समय तक गिरावट होती है तो स्वभाविक तौर पर नौकरी में कटौती की जाती है. मसलन, हम 1000 टन बिस्किट के लिए 1000 लोगों का उपयोग करते हैं तो जब मांग में कमी है तो मुझे लोगों की संख्या भी कम करनी होगी या खुद नुकसान उठाना होगा. हमारी तिमाही डिमांड में 7-8 फीसदी की गिरावट आई है.
चुनावी मौसम में भी फायदा नहीं
आम तौर पर चुनावी मौसम में बिस्किट की मांग में वृद्धि देखी जाती है लेकिन इस बार क्या हालात रहे? इस सवाल के जवाब में मयंक शाह ने बताया, ”चुनावों के दौरान बहुत सारी गतिविधियां होती हैं और इसलिए बहुत खपत होती है. हालांकि इस बार उम्मीदवारों के खर्चे को लेकर सख्ती की वजह से नुकसान हुआ. हर मोर्चों पर लागत में कटौती हो रही है.’