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इंदिरा गांधी का उड़ाते थे मजाक, इस अभिनेता की फिल्मों के टाइटल से शरमा जाता था सेंसर बोर्ड

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मराठी फिल्मों का एक ऐसा अभिनेता जिसने सेंसर बोर्ड को अपनी फिल्मों के टाइटिल को लेकर रुला कर रख दिया। दोहरे अर्थों वाले इन टाइटल को सेंसर बोर्ड तमाम कोशिशें करके भी बैन नहीं कर पाया। हम बात कर रहे हैं अभिनेता दादा कोंडके की। मराठी फिल्मों के प्रख्यात अभिनेता और निर्माता दादा कोंडके का जन्म 8 अगस्त 1932 को हुआ था। उन्हें आम आदमी के हीरो के रूप में जाना जाता है। कोंडके की नौ फिल्में 25 सप्ताह तक सिनेमाघरों में चलीं। यह गिनीज बुक में एक रिकॉर्ड के रूप में दर्ज है। आज उनके जन्मदिन पर हम आपको बता रहे हैं कुछ खास बातें…

दादा कोंडके का असली नाम कृष्णा कोंडके था। उनका बचपन छोटी मोटी गुंडागर्दी के बीच बीता। दादा ने एक बार कहा था कि वो ईंट, पत्थर, बोतल का इस्तेमाल अपने झगड़ों में करते थे। दादा कोंडके ने राजनीति में भी अपनी पूरी दखलंदाजी रखी। वो शिवसेना से जुड़े। शिवसेना की रैलियों में कोंडके भीड़ जुटाने का काम करते थे। इसके साथ ही अपने प्रतिद्वांदियों पर जमकर हमला भी बोलते थे।

कोंडके अपने मराठी नाटक ‘विच्छा माझी पूरी करा’ के लिए भी मशहूर हैं। इस नाटक को कांग्रेस विरोधी माना जाता है। क्योंकि इस नाटक में इंदिरा गांधी का मजाक उड़ाया गया था। दादा कोंडके ने इस नाटक के 1100 से ज्यादा स्टेज शो किए थे। 1975 में आई दादा कोंडके की फिल्म ‘पांडू हवलदार’ बेहद चर्चित रही थी। इसमें उन्होंने लीड रोल निभाया। । इस फिल्म के बाद से ही हवलदारों को पांडु कहा जाने लगा था। उनकी अन्य चर्चित फिल्मों में ‘सोंगाड्या’, ‘आली अंगावर’ प्रमुख हैं।

मराठी फिल्मों में गायक महेंद्र कपूर और दादा कोंडके की जोड़ी खूब जमी। कोंडके के लिए महेंद्र कपूर के गाए हुए गीत मराठी सिनेमा में काफी लोकप्रिय हुए। दादा कोंडके हास्य कलाकार थे और अपनी एक्टिंग में डबल मीनिंग कॉमेडी का इस्तेमाल भी करते थे। यही वजह थी कि वह लोगों के बीच मशहूर होते चले गए। दाद कोंडके की मराठी फिल्मों के टाइटल भी इतने अश्लील होते थे कि सेंसर बोर्ड उन्हें पास करने में शरमा जाता था। कोंडके की फिल्मों के देखकर उन्हें पास करना सेंसर बोर्ड के लिए सबसे बड़ी चुनौती होता था।

उनकी पुण्यतिथि के औचित्य को साधते हुए मुंबई के भारत माता सिनेमागृह में फिर से कोंडके की याद ताजा करने के लिए उनकी फिल्मों को दिखाने की परम्परा को शुरू किया। दादा कोंडके की सात मराठी फिल्मों ने गोल्डन जुबली मनाई, तभी उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हो गया। उसके बाद उनकी दो और मराठी फिल्मों ने गोल्डन जुबली मनाई। उनकी मराठी फिल्मों के नाम आली अंगावर यानी शरीर से चिपकने वाली, तुमचं अमचं जमहं, यानी तुम्हारी-हमारी जम गई, बोट लाबिन तिथं गुदगुल्या यानी जहां छुओ वहीं गुदगुदी, ह्रोच नवरा पाहयजे यानी मुझे यही पति चाहिए आज भी लोकप्रिय हैं। दादा कोंडके हिंदी फिल्म में भी आए। उनकी पहली हिंदी फिल्म थी तेरे मेरे बीच में, यह पहले मराठी में बनाई जा चुकी है।