इन दिनों कश्मीर और आर्टिकल 370 चर्चाओं में है. इन चर्चाओं के बीच कश्मीर के आखिरी महाराजा हरि सिंह के आखिरी दिनों के बारे में बताना भी जरूरी है, जो एकाकी, परिवार से अलग और आमतौर पर विदेश या मुंबई में गुजरा था. बेटे को उन्होंने नाराजगी के चलते पहले ही खुद से दूर कर दिया था. यहां तक की उनकी आखिरी और चौथी पत्नी भी उनसे दूर रहने लगी थीं.
महाराजा हरि सिंह की मृत्यु 65 साल की उम्र में मुंबई में हृदयाघात से हुई तो उनके पास परिवार का कोई शख्स मौजूद नहीं था. बेटा विदेश में था. पत्नी पारिवारिक तनाव के चलते 1950 से ही अलग रहने लगी थीं. दरअसल महाराजा हरि सिंह ने नाराजगी के चलते बेटे से अलगाव कर लिया था. 1949 में जब महाराजा हरि सिंह को कश्मीर के अंतरिम प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के साथ मतभेदों के चलते अपने ही राज्य से दूर होना पड़ा. इसके कुछ साल बाद जब उनके बेटे कर्ण सिंह जब राज्य के सदर-ए-रियासत बनना स्वीकार कर लिया तो वो इससे बहुत कुपित हुए. क्योंकि उन्होंने इस पूरे प्रकरण को जवाहर लाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला की सियासत माना.
वेबसाइट प्रथम प्रवक्ता में लेखक डॉ. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने लिखा, अपने शासन के अंतिम दिनों में जिन दो लोगों से वो सबसे ज्यादा दुखी और नाराज थे, उनमें से एक उनके बेटे कर्ण सिंह थे जबकि दूसरे थे शेख अब्दुल्ला.
नाराजगी के बाद बेटे से तोड़ लिये थे संबंध
जब महाराजा को कश्मीर से दूर किया जाना था तो इसके लिए राज परिवार से ही किसी रीजेंट की जरूरत थी. जब तक उनका कोई प्रतिनिधि नहीं मिल जाए, तब तक उन्हें रियासत से बाहर नहीं निकाला जा सकता था. ये रीजेंट उनका बेटा ही हो सकता था. महाराजा हरि सिंह का केवल एक ही बेटा था, जिसका नाम कर्ण सिंह था. पिता उन्हें टाइगर कहते थे. उन्हें उम्मीद थी कि बेटे इस घड़ी में उनके साथ खड़ा रहेगा लेकिन जब कर्ण सिंह ने पद स्वीकार कर लिया तो इससे महाराजा को बड़ा झटका लगा.
उसके बाद महाराजा हरि सिंह ने बेटे से खुद अलग कर लिया. वो मुंबई चले. जीवनभर कभी जम्मू कश्मीर में वापस नहीं आये. जब उनका निधन हुआ तो कर्ण सिंह विदेश में थे. उनकी गैरहाजिरी में ही महाराजा का दाह संस्कार हुआ. उनकी अस्थियां तवी नदी में प्रवाहित की गईं.
महाराजा का दांपत्य जीवन पर भी इस कलह का असर पड़ा. उनकी तीन पत्नियों के निधन के बाद उनका विवाह कांगड़ा राजघराने की तारा देवी से हुआ था. इसी से उन्हें पहला और एकमात्र बेटा कर्ण सिंह हुआ. लेकिन लगता है कि कश्मीर के हालात का खासा खराब असर महाराजा की पारिवारिक जिंदगी पर पड़ा. बेटे को उन्होंने खुद से दूर किया तो महारानी से भी अनबन रहने लगी, वो इस कदर बढ़ी कि रॉयल दंपति में भी अलगाव हो गया. दोनों अलग रहने लगे. बाद के बरसों में शायद उनका मिलन हुआ हो.
बताया जाता है कि जम्मू-कश्मीर से विदा होने के बाद महाराजा मुंबई में अपने बंगले में रहने लगे. लेकिन वो लगातार विदेश में रहते थे. संपत्ति की उनके पास कोई कमी नहीं थी. लेकिन बाद में उनके विदेश दौरे कम होते गए. वो ज्यादातर मुंबई में ही रहने लगे. उनके बंगले में कई नौकर चाकर जरूर थे लेकिन महाराजा का जीवन खासा एकाकी तो था ही, वो बीमार भी रहने लगे थे. शायद कश्मीर की सत्ता से बेदखल किये जाने का घाव उन्हें बुरी तरह सालता था. ये ताजिंदगी बना रहा.
महाराजा की उनके राज्य में दो तरह की छवि थी. टाइम मैगजीन और अन्य पत्रिकाओं के साथ उनके बारे में छपे लेखों की मानें तो उन्होंने राज्य को अपने अहम सुधारों और सामाजिक न्याय की योजनाओं से बदल दिया था. बहुत से ऐसे सुधार हरि सिंह ने अपने राज के दौरान किए जो उस समय के लिहाज से बहुत क्रांतिकारी और समय से आगे के थे. वहीं दूसरी ओर उनके बारे में ये भी माना जाता था कि वो काफी लग्जरी लाइफ जीते थे. उनके एक पेरिस के किस्से को कई जगहों पर चटखारे के लिए प्रकाशित किया गया.
महाराजा ने 1925 से लेकर 1947 तक कश्मीर पर शासन किया. कश्मीर की लोकप्रिय अंग्रेजी मैगजीन कश्मीर लाइफ ने उन पर छपे लेख कश्मीर लास्ट महाराजा में अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के हवाले से लिखा, महाराजा ने जिस तरह इस राज्य की संरचना बनाई , उसके समानांतर देश में और कोई राज्य नहीं था. जब उनका निधन हुआ तब कश्मीर के सारे समाचार पत्रों ने लंबे समय बाद उन्हें पेज पर बड़ी जगह दी.
लग्जरी लाइफ जीते थे और चाचा ने यूं किया था दंडित
उन्हें राजगद्दी इसलिए मिली थी, क्योंकि उनके चाचा के कोई बेटा नहीं था. उनकी पढ़ाई लिखाई शुरुआत में मेयो कॉलेज अजमेर में हुई. सैन्य शिक्षा के लिए उन्हें देहरादून भेजा गया. फिर विदेश में भी उनकी शिक्षा हुई. डोगरी राजवंश का ये शासक फर्राटे से कश्मीरी बोलता था, जैसा उनके पिता, चाचा या बाबा नहीं कर पाए थे.
इतिहास की किताबें कहती हैं कि वो लग्जरी जिंदगी जीते थे. 1918 में इंग्लैंड में उन्होंने धन खर्च करने के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. इस बीच एक अलोकप्रिय मामला भी उनसे जुड़ा जब पेरिस की एक महिला उन्हें अदालत तक ले गई और उन्हें मोटा हर्जाना देना पड़ा. उनकी बहुत बदनामी नहीं हो, लिहाजा अदालत में उनका नाम मिस्टर ए लिया गया. इसके चलते उन्हें अपने चाचा से सजा का सामना करना पड़ा और छह महीने के लिए जंगल के एस्टेट में रहना पड़ा.
जब उनके चाचा प्रताप सिंह का निधन हुआ तो उनका अंतिम संस्कार इतने खर्चीले अंदाज में हुआ कि पश्चिमी मीडिया के लिए ये हैरत की बात थी.
बेहद तड़कीला-भड़कीला राज्याभिषेक
इसी तरह जब 1925 में उनका राज्याभिषेक हुआ तो ये भी काफी तड़क-भड़क से भरा था. उस समय के लिहाज से इस पर 25 से 30 लाख रुपए खर्च हुए. वो खुद हीरों से चमचमा रहे थे तो उनका पसंदीदा घोड़ा जबरदस्त आभूषणों से सजाया गया था. इसमें जो हाथी शामिल किया गया वो सोने लदा हुआ था. अमेरिका से खासतौर पर एक सिनेमा आपरेटर कॉलिंग को इस मौके की फिल्म बनाने के लिए बुलाया गया था. बड़े पैमाने पर मेहमान बुलाए गए और उनकी आलीशान तरीके से खातिरदारी की गई. देशभर से नाचने के लिए लड़कियां बुलाई गईं.
महाराजा अपने जमाने के सबसे धनी लोगों में थे. उनकी आय सालाना एक करोड़ डॉलर के आसपास बताई गई. उनका राज्य शायद उस समय का सबसे बड़ा राज्य था, जो गिलगित,बालटिस्तान, लद्दाख, पूंछ, जम्मू और कश्मीर घाटी तक बड़े भूभाग में फैला हुआ था. ये भी कहा जाता है कि उनका जहाज का अंदरूनी चांदी की प्लेट का था, बड़े-बड़े महल थे.
फिर महाराजा में आने लगा बदलाव
लेकिन जैसे जैसे राजकाज का बोझ महाराजा पर पड़ने लगा, उनमें बदलाव आने लगा. जब उनके बेटे का जन्म हुआ तो उन्होंने कई काम किए. उन्होंने जमीन राजस्व माफ किया तो लड़कियों को स्कूलों में मुफ्त प्राथमिक शिक्षा की घोषणा की. साथ ही 500 छात्रवृत्तियों की घोषणा की. साथ ही ये कानून बनाया गया कि विधवाएं उनके राज्य में फिर से विवाह कर सकती हैं. सिंह ने जब श्रीनगर छोड़ा तो उनका कारवां 85 वाहनों का था. डोमिनिक लेपियर की किताब फ्रीडम एट मिडनाइट कहती है कि इन सभी वाहनों में महाराजा के कीमती सामान, जेवरात भरे हुए थे.
जब महाराजा ने मुंबई में रहने लगे तो नेहरू की सरकार ने उन्हें एक लाख डॉलर सालाना देने की मंजूर दी थी. बताते हैं कि मुंबई में भी वो जिस बिल्डिंग में रहते थे, उसे सजाने-संवारने में हमेशा एक टीम लगी रहती थी.
महाराजा द्वारा किये गए काम
- 1927 में हरि सिंह ने पारिभाषित किया कि राज्य के कामकाज क्या हैं
- 1929 में महिलाओं के अपहरण पर जेल की सजा तीन से सात साल तक बढाई. तब काफी बड़े संख्या में
- कश्मीरी लड़कियों को मुंबई और कोलकाता जैसी जगहों में बेच दिया जाता था.
- 1930 में सभी बच्चों के लिए मुफ्त प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी
- उनके शासन के दौरान जम्मू-कश्मीर में किसानों के राहत देने के लिए कृषि राहत कानून बना
- भिक्षावृत्ति, बेगार कामकाज, वेश्यावृत्ति पर पूरी तरह पाबंदी लगाई गई.
- ग्राम पंचायतें बनाई गईं
- 1938 में जम्मू एंड कश्मीर बैंक और 1945 में एसएमएचएस हास्पिटल की स्थापना
- 1931 में दलितों के लिए सभी स्कूल, कॉलेज और कुएं खोले गए. छूताछूत को अपराध घोषित किया गया.
- 1934 में प्रजा सभा की स्थापना को मंजूरी, ये सभा 75 सदस्यीय थी, जिसमें 12 सरकारी अधिकारी और
- 16 स्टेट कौंसलर और 14 नोमिनेटेड लोग थे जबकि 33 लोग चुनकर आते थे, जिसमें 21 मुस्लिम, 10 हिंदू और दो सिख होते थे. इसे ही 1947 में भारत में विलय के बाद राज्य संवैधानिक एसेंबली में बदला गया.