एक ताज़ा अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि यौन संबंधों से फैलने वाली संक्रामक बीमारी सिफिलिस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. ये भी खुलासा हुआ है कि एचआईवी से ज़्यादा तेज़ी से ये बीमारी फैल रही है. रोग निवारण एवं नियंत्रण के लिए बने नए यूरोपियन सेंटर के अध्ययन में इस बीमारी को लेकर और भी चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. साथ ही, जो आंकड़े सामने आए हैं उन्हें लेकर विशेषज्ञों में चिंता देखी जा रही है. जानें कि क्या है ये बीमारी और कैसे व क्यों इतनी तेज़ी से फैल रही है.
एक समाचार पोर्टल टुडे ऑनलाइन के मुताबिक गए ज़माने की सिफिलिस बीमारी को दुनिया में भुलाया जा चुका था, लेकिन ये फिर दुनिया भर में वापसी कर चुकी है. सिंगापुर के स्वास्थ्य अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि केवल सिंगापुर जैसे छोटे देश में ही पिछले पांच सालों में हर साल डेढ़ हज़ार नए मरीज़ बढ़ रहे हैं. वहीं, यूरोपियन सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार 2010 में ये बीमारी अपने न्यूनतम प्रभाव में थी, जबकि इसके बाद के सालों में ये तेज़ी से बढ़ी है और यूरोप में तो स्थिति भयानक हो रही है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
यूरोपियन सेंटर यानी ईसीडीसी के मुताबिक साल 2017 में ही सिफिलिस के 33 हज़ार से ज़्यादा नए मरीज़ सामने आए. पूरे यूरोप में ये बीमारी तेज़ी से फैली है और अब तक 2 लाख 60 हज़ार से ज़्यादा प्रमाणित केस सामने आ चुके हैं. 2010 में जहां हर एक लाख लोगों में से औसतन 4.2 लोगों को ये बीमारी होना पाया गया था, 2017 में ये औसत 7.1 देखा गया. यूरोप के 15 देशों में 15 फीसदी मरीज़ों की बढ़ोत्तरी हुई. पांच देशों आइसलैंड, आयरलैंड, यूके, जर्मनी और माल्टा में 100 फीसदी या उससे भी ज़्यादा मरीज़ बढ़े.
सिफिलिस ट्रेपानिमा पैलिडम नाम के बैक्टीरिया के कारण फैलता है.
आइसलैंड के आंकड़े तो ये कह रहे हैं कि सिफिलिस के मरीज़ों की संख्या में 850 फीसदी तक वृद्धि हुई है. इसी समय के दौरान केवल दो देश एस्टोनिया और रोमानिया रहे, जहां मरीज़ों की संख्या घटकर आधी या उससे भी कम रह गई है.
पुरुष ज़्यादा हैं शिकार
सिफिलिस को लेकर आई ईसीडीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष इस बीमारी के ज़्यादा शिकार हैं. आंकड़ों के हिसाब से 2017 में प्रति लाख पुरुषों में से 12.1 सिफिलिस के मरीज़ हैं, वहीं प्रति लाख में से 6.1 महिलाएं. हालांकि इन आंकड़ों में एक राहत की बात है कि 2005 से बच्चों में पैदाइशी तौर पर इस रोग के पाए जाने की संख्या में कमी आई है. यूरोप के अलावा अमेरिका और जापान जैसी जगहों पर महिलाओं को सिफिलिस होने के मामले बढ़ते दिख रहे हैं.
क्या है ये बीमारी और क्या है इलाज?
सिफिलिस एसटीआई यानी यौन संचरित संक्रमण है, जो ट्रेपानिमा पैलिडम नाम के बैक्टीरिया के कारण फैलता है और इसके लक्षण अलग अलग स्टेजों पर अलग अलग होते हैं. संक्रमित रोगी अगर शुरूआती स्टेज पर है तो बगैर दर्द वाला अल्सर प्रमुख लक्षण है, जो ज़्यादातर गुप्तांगों या होंठों जैसे दूसरे अंगों पर भी हो सकता है. कुछ मामलों में ऐसे अल्सरों में दर्द की शिकायतें भी देखी जा चुकी हैं.
आगे की स्टेज में, पूरे शरीर पर खराशों या लकीरों के निशान दिखते हैं. हथेलियों और तलवों पर ज़ख्म हो जाना आम लक्षण होते हैं. कुछ मरीज़ों में हाथ और पैर में ऐसे ज़ख्म नहीं देखे गए बल्कि खोपड़ी, धड़ और लिम्ब्स पर रैशेज़ पाए गए. अंतिम या खतरनाक स्टेज पर मरीज़ के अंगों पर रोग का हमला होता है. विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि यह संक्रमण इसलिए खतरनाक है क्योंकि इसके लक्षण कई मामलों में दिखते नहीं हैं लेकिन असुरक्षित यौन संबंधों से यह बीमारी फैलने का खतरा बना रहता है.
इस बीमारी का इलाज आसान भी है और ज़्यादा महंगा भी नहीं है, लेकिन दिक्कत ये है कि कई बार लक्षण न दिखने पर इस बीमारी का पता देर तक चलता ही नहीं है. लेकिन, ध्यान न दिए जाने पर ये बीमारी कठिन स्टेज पर पहुंच जाती है और इसके चलते एचआईवी का खतरा भी बढ़ जाता है. दूसरी ओर, ये बीमारी गर्भ में पल रहे शिशु को प्रभावित करती है और उसे जन्मजात सिफिलिस हो सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता बढ़ाना ही इस संक्रमण से बचाव का सबसे सही रास्ता है.
ईसीडीसी की रिपोर्ट में सिफिलिस का बड़ा कारण समलैंगिक संबंधों को माना गया है.
कारण है सोशल मीडिया?
असुरक्षित यौन संबंधों के कारण फैलने वाले इस संक्रमण पर ईसीडीसी की रिपोर्ट में बड़ा कारण समलैंगिक संबंधों को माना गया है. इसके अलावा टुडे की रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि सोशल मीडिया पर डेटिंग वेबसाइटों के कारण लोग कैज़ुअल सेक्स या कई पार्टनरों के साथ यौन संबंध बनाने की तरफ बढ़े हैं. ये एक बड़ा कारण है, जिससे इस रोग के मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है.
इनके अलावा और भी कारण हैं जैसे एड्स से बचाव के लिए कुछ दवाएं चलन में आ चुकी हैं. इन दवाओं का सेवन करने के बाद सेक्स करने पर एड्स नहीं होता. ऐसे दावों के चलते लोग इन दवाओं का सेवन करने के बाद असुरक्षित तरीके से यानी बगैर कंडोम इस्तेमाल किए यौन संबंध बनाने की तरफ बढ़ रहे हैं, जिसके कारण सिफिलिस जैसे संक्रमण की आशंकाएं बढ़ रही हैं.