ग्लोबल वार्मिंग का असर आम लोगों पर अब साफ देखने को मिल रहा है। जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में तापमान बढ़ा है, उसकी वजह से पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ गई है। ताजा स्टडी के अनुसार हिमालय के ग्लेशियर इस 21वीं सदी में दो गुना अधिक रफ्तार से पिघल रहे हैं, जिसके चलते आने वाले समय में एशिया के करोड़ों लोगों को पानी का संकट उठाना पड़ सकता है। वैज्ञानिक लंबे समय से यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कोयला जलाने, तेल और गैस के इस्तेमाल से कितना तेजी से ग्लोबल तापमान बढ़ रहा है।Melting faster
तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर
नए अध्ययन के अनुसार चीन, भारत, नेपाल, भूटान में 40 वर्ष के सैटेलाइट अध्ययन से पता चलता है कि ग्लेशियर काफी तेजी से पिघल रहे हैं। वर्ष 2000 से हर वर्ष एक से डेढ़ फीट की बर्फ पिघल रही है। जोकि 1975 से 2000 की तुलना में दोगुनी है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लेमंट दोहार्ती ऑब्सरवेटरी के पीएचडी उम्मीदवार जोशुआ मोरेर की अगुवाई में किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि हिमालय पर बर्फ तेजी से पिघल रहे हैं। इसका सीधा असर 800 मिलियन लोगों पर इसका असर पड़ेगा।
25% will melt
25 फीसदी ग्लेशियर पिघल जाएंगे
इस शोध में कहा गया है कि आने वाले समय में ग्लेशियर अपना 25 फीसदी हिस्सा गंवा देंगे। ग्लेशियर जियोग्राफर जोसेफ शी का कहना है कि दुनियाभर के ग्लेशियर भी बढ़ते तापमान और ग्लोबल वॉर्मिंग से प्रभावित हुए हैं और ग्लेशियर पहले की तुलना में तेजी से पिघल रहे हैं। बता दें कि हाल ही में नीति आयोग की रिपोर्ट सामने आई है जिसमे कहा गया है कि अगले एक वर्ष में यानि 2020 तक देश के 21 शहरों का ग्राउंड वॉटर लेवल खत्म हो जाएगा। जिसकी वजह से देश की 10 करोड़ आबादी को पीने के पानी के लिए तरसना होगा। जिन 21 शहरों में ग्राउंड लेवल वॉटर अगले वर्ष खत्म हो जाएगा उसमे दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद जैसे शहर भी शामिल हैं।
Water crisis
40 फीसदी आबादी को पानी का संकट
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2030 तक देश की 40 फीसदी आबादी के लिए पीने का पानी नहीं होगा। जिस तरह से नीति आयोग की यह रिपोर्ट सामने आई है उससे साफ है कि स्थिति काफी भयावह हो गई है। अगले वर्ष देश के 21 शहरों को पीने के पानी के लिए जूझना होगा। चेन्नई की तीन नदियों, चार जल स्रोत, पांच तालाब, छह जंगल पूरी तरह से सूख चुके हैं। चेन्नई के यह हालात तब हैं जब अन्य मेट्रोल शहरों की तुलना में यहां पर बेहतर वॉटर रिसोर्स और बारिश के पानी को बचाने की बेहतर व्यवस्था है।