एस-400 मिसाइल रक्षा सिस्टम एयर डिफेंस सिस्टम के तौर पर समझा जाता है. इस तकनीक और एस-400 मिसाइलों के लिए भारत ने रूस के साथ बड़ा रक्षा समझौता किया है और अमेरिका कुछ समय से इस समझौते को लेकर बीच में टांग अड़ाता दिख रहा है. इसके बावजूद भारत का रुख साफ है कि वह रूस के साथ इस रक्षा समझौते से कोई समझौता करने के मूड में नहीं है. आइए जानें कि क्या है ये एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम और कौन कौन से देश इस सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं?
एस-400 सिस्टम के विकास की शुरूआत रूस ने 1980 के दशक में कर दी थी. 12 फरवरी 1999 को अस्त्राक्हान में इस सिस्टम का सफल परीक्षण और उसके बाद 2001 में रूसी सेना में इस सिस्टम को तैनात कर दिया गया. इसके बाद इस सिस्टम को लेकर कुछ आपत्तियां उठीं और नए सिरे से परीक्षणों का दौर शुरू हुआ. फिर 2007 में इस सिस्टम को मंज़ूरी मिल गई. इसके बाद से ही एशिया और दूसरे महाद्वीपों के कुछ देशों ने इस सिस्टम के प्रति रुझान दिखाना शुरू किया.
एस-400 सिस्टम इसलिए है खास
* 150 किमी की छल विरोधी रेंज है यानी रडार से बचने की चाल को नाकाम कर सकता है.
* 0.4 वर्गमीटर के क्रॉस सेक्शन वाले रडार (आरसीएस) और 4800 मीटर/सेकंड की चाल वाले बैलेस्टिक निशाने के लिए इसकी रेंज 230 किमी तक है.
* 4 वर्गमीटर के आरसीएस वाले निशाने के लिए यह 390 किमी तक की रेंज में कारगर है.
* वर्तमान में उपलब्ध सबसे बेहतरीन मिसाइल डिफेंस सिस्टमों में से एक है ये सिस्टम.
* इस सिस्टम को क्रूज़ मिसाइल और शॉर्ट रेंज की बैलेस्टिक मिसाइलों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है.
* 40N6 किसी निशाने को 400 किमी तक की रेंज में मार सकता है.
* एस-400 सिस्टम 600 किमी की दूरी तक भी एयरक्राफ्ट को ट्रैक कर सकता है.
किन देशों की सेना में है ये सिस्टम?
ज़ाहिर तौर पर रूस की सेना में इस सिस्टम की सबसे बड़ी तैनाती है. भारत के साथ रूस ने 5.43 बिलियन डॉलर का सौदा किया है, जिसके तहत भारतीय वायुसेना को 2020 तक एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस सिस्टम की पांच रेजिमेंट्स मिलेंगी. रूस के पास 19 रेजिमेंट्स के अंतर्गत 39 बटालियन हैं.
रूस यह सिस्टम चीन को पहले ही बेच चुका है. 2014 में चीन के साथ इस सिस्टम के लिए समझौता हुआ था और 2018 से ही चीन को यह सिस्टम मिलना शुरू हो गया था. चीन इस सिस्टम का सफल परीक्षण भी कर चुका है. 2014 में ही अल्जीरिया को सिस्टम रूस ने बेचा था.
एस-400 सिस्टम का पहला खरीदार बेलारूस था. 2007 में ही बेलारूस ने ये सिस्टम मांगे थे और रूस ने 2016 में दो सिस्टम सौंपे थे. इनके अलावा, तुर्की भी इस सिस्टम का खरीदार है. रूस के साथ हो चुके समझौते के बाद इस साल जुलाई में तुर्की को रूस ये सिस्टम सौंप सकता है. वहीं, सउदी अरब भी रूस के साथ इस सिस्टम के लिए 3 बिलियन डॉलर से ज़्यादा का समझौता कर चुका है. सीरिया में भी इस सिस्टम की तैनाती की खबर है.
ये देश भी दिखा चुके हैं रुझान
ईरान और अमेरिका के बीच बने हुए तनाव से पहले ही रूस ने अपने इस सिस्टम को बेचने पर रुख साफ करते हुए कहा था कि वह किसी भी देश को यह एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम बेचने को तैयार है, चाहे वह यूएसए ही क्यों न हो. रूस की इस घोषणा के बाद से कई देशों ने इस सिस्टम की खरीदी को लेकर रुझान ज़ाहिर किया है. इन देशों में दक्षिण कोरिया, इराक, मिस्र और कतर के नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं.
वास्तव में, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य के चलते इस सिस्टम को लेकर हो रहे समझौते महत्वपूर्ण हैं क्योंकि रक्षा के नज़रिए से यह सिस्टम किसी भी देश के लिए बड़ी उपलब्धि है. ऐसे ही कारणों से अमेरिका अपने दबदबे का इस्तेमाल करते हुए कुछ डील्स को प्रभावित करने या अपनी शर्तें थोपने का दबाव बनाने की रणनीति भी बना रहा है.