छत्तीसगढ़ की सबसे हाई प्रोफाइल संसदीय क्षेत्र में से एक दुर्ग पर सबकी निगाहें टिकी हैं क्योंकि माना जा रहा है कि यहां से कांग्रेस प्रत्याशी से ज्यादा राज्य सरकार की साख दांव पर लगी है. यहां सूबे की सरकार को टक्कर देने के लिए लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने कुर्मी समाज से ताल्लुक रखने वाले विजय बघेल को मैदान में उतारा. विजय बघेल का सीधा मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिमा चन्द्राकर से ही माना जा रहा है.
दुर्ग लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी भले ही प्रतिमा चन्द्राकर हैं, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित पूरी कांग्रेस के लिए ये सीट साख का विषय है. क्योंकि दुर्ग संसदीय क्षेत्र के विधानसभा सीट दुर्ग ग्रामीण से विधायक ताम्रध्वज साहू, साजा विधायक रविन्द्र चौबे और अहिवारा विधायक गुरु रूद्र कुमार प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. इसके अलावा साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सूबे की 11 में से जो एकमात्र सीट कांग्रेस ने जीती थी, वो दुर्ग ही थी. ऐसे में इस सीट से जीत कांग्रेस के लिए साख का विषय बनी हुई है.
मुख्यमंत्री की शपथ लेने की प्रक्रिया करते भूपेश बघेल. फाइल फोटो.
बीजेपी प्रत्याशी विजय बघेल अब के सीएम भूपेश बघेल को चुनावी मैदान में मात दे चुके हैं. साल 2008 के विधानसभा चुनाव में विजय बघेल ने भूपेश बघेल को हराया था. इसके बाद साल 2013 के विधानसभा चुनाव में भूपेश बघेल ने विजय बघेल को हराया. हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विजय बघेल को मौका नहीं दिया. तब से ही अटकलें लगाई जा रहीं थी कि विजय को बीजेपी लोकसभा चुनावी मैदान में उतारेगी.
सरल व मिलनसार स्वभाव के विजय बघेल सामाजिक तौर पर भी काफी मजबूत माने जाते हैं. कुर्मी समाज के साथ ही अन्य वर्गों में भी इनकी पकड़ है. बीकॉम तक की पढ़ाई करने वाले विजय बघेल का नम्मूलाल बघेल और सत्यभामा बघेल के बेटे हैं. 15 अगस्त 1959 को जन्मे विजय बघेल कबड्डी के राज्य स्तरीय खिलाड़ी रह चुके हैं. इन्होंने पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर की टीम का प्रतिनिधित्व भी किया है. एक बार इन्हे रजत और एक बार स्वर्ण पदक मिला.
राजनीतिक सफर
साल 1985 से 2004 तक भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मचारी रहे विजय बघेल ने साल 2000 में पहली बार नगर पालिका भिलाई-3 चरोदा के अध्यक्ष पद का निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते. इसके बाद साल 2003 के विधनसभा चुनाव में पाटन सीट से एनसीपी की टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. इसके बाद उन्होंने 2004 में बीजेपी की सदस्यता ली. रिश्ते में चाचा भूपेश बघेल के खिलाफ उन्होंने 2008 में बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते. इस कार्यकाला में वे राज्य सरकार में संसदीय सचिव भी रहे. इसके बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में हार मिली.