लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी की आंधी चल रही है तो भी पंजाब में कांग्रेस सबसे मजबूत नजर आ रही है. मार्च 2017 में जब यहां विधानसभा चुनाव हो रहा था तब भी किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि कैप्टन बीजेपी-शिरोमणि अकाली दल गणबंधन को हरा देंगे. लेकिन कैप्टन की लीडरशिप में वहां पर कांग्रेस ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया. उन्हीं के नेतृत्व में कांग्रेस ने गुरुदासपुर उप चुनाव भी जीत लिया था. 2019 में भी वो इतनी मजबूत स्थिति में हैं. इसलिए कांग्रेस में वो हीरो की तरह उभरे हैं.
पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं. जिनमें से काग्रेस आठ पर आगे चल रही है.एग्जिट पोल में भी पंजाब में कांग्रेस का दबदबा दिख रहा था. पंजाब कांग्रेस में जबरदस्त सियासी ड्रामा चल रहा है. नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह खुलकर एक दूसरे के आमने सामने हैं. सवाल ये है कि क्या अब कांग्रेस नेतृत्व इस मामले में कैप्टन की ही सुनेगा. क्या नवजोत सिंह सिद्धू को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा?
पिछले दिनों कैप्टन ने कहा था कि नवजोत सिंह सिद्धू खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और मुझे रिप्लेस करना चाहते हैं. दरअसल, अमृतसर लोकसभा सीट को लेकर नवजोत सिंह सिद्धू खासे नाराज थे. सिद्धू चाहते थे कि इस सीट से उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू को टिकट मिले, मगर ऐसा नहीं हुआ. इसके बाद सिद्धू मुखर होकर कैप्टन के खिलाफ सामने आए.
आमने-सामने हैं कैप्टन अमरिंदर और नवजोत सिंह सिद्धू!
राजनीतिक विश्लेषक नवीन धमीजा का कहना है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब में अपनी पकड़ है. अपनी छवि है इसलिए वो वहां ज्यादा सीटें जितवाने में कामयाब दिख रहे हैं. वहां कांग्रेस का प्रभाव नहीं है. कैप्टन ने सत्ता में आने के बाद नशाखोरी के खिलाफ काफी काम किया है. उस पर अंकुश लगाया है. इसलिए उनकी पकड़ और मजबूत हुई है. उसी का असर दिख रहा है.
धमीजा कहते हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू भी कांग्रेस के स्टार प्रचारक हैं लेकिन कैप्टन उनसे बड़े नेता हैं. विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में उनकी मजबूत स्थिति को कांग्रेस नेतृत्व नकार नहीं सकता. इसलिए जब दोनों नेताओं के झगड़े को निपटाना होगा तो कैप्टन को ज्यादा वजन दिया जाएगा. लेकिन मुझे नहीं लगता कि सिद्धू को बाहर किया जाएगा. सिद्धू को भी कहीं समायोजित किया जाएगा.