बदरीनाथ धाम के कपाट शुक्रवार को ब्रह्ममुहूर्त और मेष लग्न में 4 बजकर 15 मिनट पर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं, बदरीनाथ धाम के कपाट पूरे वैदिक मंत्रोच्चार और विधि विधान के साथ आज श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोले गए हैं, आज यहां देश-विदेशी से श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचे हैं, उम्मीद है कि आज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करेंगे।
गौरतलब है कि बदरीनाथ मंदिर को बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं, जो कि अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। यह हिन्दुओं के चार धाम में से एक धाम भी है, मंदिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है , यहां अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है।
गंगा नदी 12 धाराओं में बंट गई
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना।
बदरीनाथ मंदिर को बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं
नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है
विष्णु पुराण, महाभारत और स्कन्द पुराण जैसे कई प्राचीन ग्रन्थों में इस मन्दिर का उल्लेख मिलता है। आठवीं शताब्दी से पहले आलवार सन्तों द्वारा रचित नालयिर दिव्य प्रबन्ध में भी इसकी महिमा का वर्णन है।
बदरीनाथ की मूर्ति
आदि शंकराचार्य ने इसका निर्माण कराया
भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसका निर्माण कराया था।
बदरीनाथ की मूर्ति
बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी।