कहते हैं हुनर और हौसला है तो कोई भी आपको कामयाब होने से नहीं रोक पाएगा. कोई काम अगर जुनून से किया जाएगा, तो मंजिल मिल जाती है. ऐसी ही एक कहानी है छत्तीसगढ़ की. यहां के राजनांद गांव जिले में एक NGO से जुड़ी हजारों महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनकर अपने परिवार का सहारा बन रहीं हैं. घर के राशन के लिए पैसे नहीं होने पर जो महिलाएं दूसरे के सामने हाथ फैलाती थीं, वे आज आत्मनिर्भर बन चुकी है. यह सब हो पाया है जिमीकंद उगाने के महाअभियान से.
पद्मश्री फुलबासन यादव ने देखा कि ग्रामीण महिलाओं के घर की आर्थिक स्थिति के सुधार के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है. विचार आया कि घर की बाड़ी या फिर खाली पड़ी जमीन पर जिमीकंद की खेती शुरु की जाए. फूलबासन बाई के अनुसार जिमीकंद खेती के माध्यम से महिलाओं की अच्छी कमाई हो सकती है.
घर की बाड़ी में आधा फीट का गड्ढा खोदकर जिमीकंद के बीज को डाला जाता है। जहां पर पानी की उपलब्धता होती है, वहां इसका उत्पादन जल्द होता है यानी कि आठ माह के भीतर ही उत्पादन कर आर्थिक लाभ लिया जा सकता है. महिलाओं को इस खेती के लिए प्रेरित करने वाली पद्मश्री फुलबासन बाई यादव ने बताया कि बारिश के पहले ही इसका रोपण किया जाना चाहिए ताकि इसका ज़्यादा से ज़्यादा लाभ मिल सके.
वर्ष 2014-15 में बतौर प्रयोग 1000 महिलासमूह को अपने-अपने स्तर पर जिमीकंद का उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया गया. शुरुआत में महिलाओं को जिमीकंद का उगाने से दो करोड़ रुपए की आमदनी हुई. अब स्वयं सहायता समूह ने दूसरों को भी आत्मनिर्भर बनाने का अभियान शुरू कर दिया.
हुलिया बाई वर्मा ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से उन्हें मजदूरी करनी पड़ती थी. पर फिर समूह से प्रेरणा लेकर बीते साल घर की बाड़ी में 1 क्विंटल जिमीकंद की खेती की और आज एक अच्छी आमदनी के माध्यम से अपने बच्चों के बेहतर शिक्षा के लिए ख़र्च कर रही है.