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पति-पत्नी ने मिलकर लड़े 22 चुनाव, सारे चुनाव हारे…

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ग्वालियर। 25 साल में 22 चुनाव लड़े पर एक में भी विजयश्री नहीं मिली। जब निराशा हुई तो पत्नी ने साथ दिया। दोनों ने मिलकर चुनाव लड़े लेकिन हार कभी नहीं मानी। वार्ड मेम्बरी से लेकर उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति तक के चुनावी मैदान में उतरे और अब तक यह सिलसिला निरंतर जारी रहा।

इस बार भी लोकसभा चुनाव में ताल ठोकी, लेकिन पार्टी से बी फार्म न मिलने के कारण उनका नामंकन निरस्त हो गया, जिस कारण इस बार वे चुनाव लड़ने से महरूम रह जाएंगे। यह चुनावी रणवांकुर हैं समाधिया कॉलोनी में चाय की दुकान चलाने वाले आनंद कुशवाह उर्फ नारायणी।

नई दुनिया की रिपोर्ट के अनुसारआनंद बताते हैं, वर्ष 1994 में पार्षदी का चुनाव 25 साल की उम्र में लड़ा था। जब चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन पूर्व मंत्री नारायण सिंह कुशवाह पार्षदी का चुनाव लड़ रहे थे। उन्होंने मुझे किसी बात को लेकर भला-बुरा कहा। तब प्रतिज्ञा ली कि इन्हें चुनाव हराकर ही मानूंगा। मैंने उनके खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन चुनाव नहीं हरा सका। इसके बाद जब भी नारायण सिंह चुनाव लड़े तो उनके खिलाफ मैं भी मैदान में उतरा।

25 साल बाद विधानसभा चुनाव 2018 में नारायण सिंह 121 मतों से पराजित हुए। इस चुनाव में मुझे अपने समाज के कुल 125 मत मिले थे। यही मत नारायण सिंह को हराने में कारगार साबित हुए।

कुशवाह का कहना है कि वर्ष 1999 में बीएसपी के टिकट पर नगर निगम में महापौर के लिए पत्नी गंगादेवी और स्वयं पार्षद के लिए चुनाव मैदान में उतरा था। हर चुनाव पति-पत्नी ने साथ-साथ लड़ा और प्रस्तावक से लेकर प्रचार-प्रसार भी एक-दूजे के लिए किया। नगर निगम, विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा, उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति के चुनावों में नामांकन फॉर्म भरा।

हालांकि राज्यसभा व राष्ट्रपति के चुनाव में प्रस्तावक न मिलने से फार्म निरस्त हो गया था। राज्यसभा के लिए 10 विधायक और राष्ट्रपति चुनाव में 50 सासंद प्रस्तावक होना चाहिए, जो मेरे पास नहीं थे। इस बार लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी का बी फार्म नहीं मिलने से फार्म निरस्त हो गया।