छत्तीसगढ़ के पॉवर हब कोरबा में राजनीतिक पारा चढ़ने के साथ चुनावी चिकन पॉलिटिक्स तेज हो गई है। परिवार के सदस्यों की संख्या के हिसाब से चिकन दुकान की पर्ची बांटी जा रही है। चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में भी यह चिकन पॉलिक्टिस काफी लोकप्रिय हुई थी। इन सबके बीच पहचान के संकट से जूझ रहे भाजपा प्रत्याशी को मोदी नाम और श्रमिकों के भरोसे अपनी नैया पार लगने की उम्मीद है। वहीं, पति के नाम के सहारे सियासत में भाग्य आजमा रही कांग्रेस प्रत्याशी परंपरागत आदिवासी वोट बैंक और चार महीने पहले जीते सातों विधायकों के भरोसे जीत सुनिश्चित मान रही हैं।
इस सीट से कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही प्रत्याशी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी ज्योतिनंद दुबे श्रमिक वर्ग से आते हैं। दुबे के भाई भी राजनीति में हैं और दीपका नगर पालिका के अध्यक्ष हैं। दुबे को सबसे ज्यादा उम्मीद क्षेत्र में रहने वाले वर्किंग क्लास से है। इसमें केंद्रीय कर्मचारी भी शामिल हैं, जिनके बीच भारतीय मजदूर संघ, इंटक समेत अन्य कर्मचारी संगठन सक्रिय हैं। हालांकि श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग केंद्र की कथित श्रमिक विरोधी नीति के कारण भाजपा से नाराज भी है। कांग्रेस की ज्योतना महंत यहां से सांसद रहे डॉ. चरणदास महंत की पत्नी हैं।
डॉ. महंत सक्ती सीट से विधायक और राज्य विधानसभा के अध्यक्ष हैं। कोरबा सीट का तीसरा चुनाव कोरबा संसदीय सीट पर यह तीसरा आम चुनाव हो रहा है। परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आई इस सीट पर पहला चुनाव डॉ. चरण दास महंत ने जीता था। वहीं, 2014 में हुए दूसरे चुनाव में भाजपा के डॉ. बंशीलाल महतो ने जीत दर्ज की। कांग्रेस ने जकांछ के ज्यादातर नेताओं को अपने पाले में कर लिया है। अजीत जोगी भी चुनाव मैदान से बाहर हैं। ऐसे में कांग्रेस को लग रहा है कि विधानसभा में जकांछ का पूरा वोट उसी को मिलेगा।
मरवाही-पाली कांग्रेस का मजबूत गढ़
इस संसदीय सीट में शामिल मरवाही, पाली- तानाखार विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव को छोड़कर दें तो यहां कांग्रेस का दबदबा रहा है। पाली-तनाखार सीट की भी लगभग यही स्थिति है। रामदयाल उइके ने पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा से लड़ा और वे तीसरे नंबर पर रहे।
55 हजार से अधिक का गड्ढा
2018 के चुनाव में यहां की आठ विधानसभा सीटों में भाजपा केवल एक रामपुर सीट जीती है। एक मरवाही सीट जकांछ के पास है। बाकी छह सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। कांग्रेस को इन सीटों पर कुल 396742 व भाजपा को 340990 वोट मिले हैं। दोनों के वोट में करीब 55 हजार से अधिक का अंतर है।
तीन जिले आठ सीट
इस संसदीय क्षेत्र में कोरबा के साथ कोरिया और बिलासपुर की कुल आठ विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें चार आदिवासी आरक्षित व चार सामान्य सीटें शामिल हैं। करीब 50 फीसद वोटर आदिवासी हैं। लगभग 20 से 22 फीसद ओबीसी व 12 फीसद के आसपास अनुसूचित जाति वर्ग के हैं। बाकी सामान्य वर्ग के वोटर हैं।
पूरा खेल है पैसे का : यहां चुनाव में पैसे का खेल जमकर चलता है। कोरबा बस स्टैंड में मिले जगदीश यादव के अनुसार चुनाव आयोग कितनी भी सख्ती कर ले यहां प्रत्याशी उसकी तोड़ निकाल ही लेते हैं। हर चुनाव में यहां करोड़ों का खेल होता है। यहां 10 दिन से मुर्गा पर्ची चल रही है।
झुग्गियों को रिझाने में झोंकी ताकत : कांग्रेस ने झुग्गी बस्तियों के वोट बैंक को खींचने में पूरी ताकत झोंक दी है। इन बस्तियों के लोगों की कांग्रेस कार्यालय और नेताओं के पास आवाजाही भी बढ़ गई है।
मुश्किल से मिली थी जीत : पिछले आम चुनाव में मोदी लहर के बावजूद भाजपा यह सीट केवल 42 सौ वोट से जीत पाई थी। मुकाबला मौजूदा कांग्रेस प्रत्याशी के पति डॉ. चरण दास महंत और भाजपा के बंशीलाल महतो के बीच हुआ था।
पंजे के निशान पर खड़ी हैं ज्योत्सना : झंडा, बैनर और पोस्टर के प्रचार की जंग में कांग्रेस आगे दिख रही है। पूरे संसदीय क्षेत्र में जगहजगह कांग्रेस प्रत्याशी के हाथ जोड़े फ्लैक्स और होर्डिंग लगे हैं। यहां भाजपा कमजोर नजर आ रही है।
वर्किंग क्लास की भी बड़ी भूमिका : कोरबा संसदीय क्षेत्र में एनटीपीसी, एचटीपीपी, इंडियन ऑयल और एसईसीएल जैसे केंद्रीय व सीएसईबी के पावर प्लांट के साथ बालको समेत अन्य निजी उद्योग भी हैं। प्रत्यक्ष रूप से इनमें 60-70 हजार लोग जुड़े हुए हैं।
भाजपा नेताओं की सक्रियता पर सवाल
लोकसभा चुनाव में भाजपा नेताओं की सक्रियता पर भी सवाल उठने लगा है। इस सीट से एकमात्र भाजपा विधायक ननकीराम कंवर अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं। बाकी नेताओं की सक्रियता चर्चा का विषय बनी हुई है। लोग कह रहे हैं ज्यादातर भाजपा नेता घर बैठे हुए हैं।