इन दिनों जहां देश में जारी चुनावी माहौल के बीच हर दिन सियासत के नए-नए रूप और रंग देखने को मिल रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ एक ऐसे सर्वे की रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें राजनीतिक पार्टियां जनता के भरोसे पर खरी नहीं उतरीं. देश की जनता के लिए सेना सबसे ज्यादा भरोसेमंद संस्था है. इसके बाद नंबर आता है न्यायपालिका और अन्य संस्थाओं का. इस क्रम राजनीतिक पार्टियां सबसे निचले पायदान पर आती हैं.’पॉलिटिक्स एंड सोसायटी बिटवीन इलेक्शंस 2019′ नाम के इस सर्वे को बेंगलुरु स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी और दिल्ली के लोकनीति सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (CSDS) की ओर से कराया गया है. सर्वे राजनीति, समाज, सरकारी कामकाज और राष्ट्रवाद को लेकर लोगों के विचारों पर आधारित है.
राजनीतिक पार्टियां भरोसे के लायक नहीं
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक सेना पर देश की जनता को सबसे ज्यादा विश्वास है. ये विश्वास दर 88 फीसदी है. वहीं न्यायपालिका (सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट) पर लोगों का विश्वास दर 60 फीसदी से ज्यादा है. सर्वे की सबसे दिलचस्प बात राजनीतिक दलों को लेकर सामने आई, जिनके प्रति लोगों का विश्वास दर नकारात्मक रूप से -55% है. ये कैलकुलेशन राजनीतिक पार्टियों पर भरोसा जताने वाले लोगों की तादाद में से उन पर भरोसा न करने वाले लोगों की तादाद को घटाकर किया गया. सर्वे के मुताबिक, न सिर्फ राजनीतिक पार्टियां, बल्कि सरकारी अधिकारी और पुलिस विभाग पर भी लोगों को भरोसा नहीं है.ये सर्वे देश के 12 राज्यों – असम, जम्मू-कश्मीर, केरल, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और दिल्ली-एनसीआर के 24,000 लोगों पर किया गया. प्रत्येक राज्य में करीब 2,000 लोगों को सर्वे में शामिल किया गया.
बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या
सर्वे के एक सवाल में लोगों से पूछा गया कि देश के लिए सबसे बड़ी समस्या क्या है. 18 से 35 वर्ष के 49 फीसदी लोंगों का मानना है कि बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है. विकास, गरीबी 15 फीसदी और कानून, प्रशासन, भ्रष्टाचार 13 फीसदी लोगों को सबसे बड़ी समस्या लगी.
राष्ट्रवाद पर रुख
सर्वे में पूछा गया कि क्या सरकार को उन लोगों को सजा देनी चाहिए, जो बीफ खाते है, धर्मांतरण करवाने में शामिल रहते हैं, राष्ट्रगान के लिए खड़े नहीं होते, ‘भारत माता की जय’ बोलने से इंकार करते हैं. सर्वे में शामिल 30 फीसदी लोगों का कहना है कि सरकार को उन लोगों को सजा देनी चाहिए जो सार्वजनिक जगहों पर राष्ट्रगान के लिए नहीं खड़े होते हैं. हालांकि 20 फीसदी लोगों ने इससे असहमति जताई है.सर्वे के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड जैसे हिंदी भाषी राज्यों के लोगों ने सर्वे में राष्ट्रवादी सोच को दर्शाया है.
बीफ खाने पर सजा मिलनी चाहिए या नहीं, इस सवाल के जवाब में सर्वे में पंजाब, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड जैसे राज्यो में बीफ खाने पर सजा की बात की गई है. वहीं नागालैंड और जम्मू-कश्मीर में उन लोगों की तादाद ज्यादा थी, जिन्होंने बीफ पर सजा की मांग का विरोध किया.