रायपुर। शराबबंदी का शोर विधानसभा चुनाव के समय से है। कांग्रेस ने शराबबंदी को अपने चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किया। सरकार बनी तो शराबबंदी के लिए प्रयास किए जाने को कमेटी बनाने की बात सामने आई। शराबबंदी इस चुनाव में भी बड़ा मुद्दा है। शराब घर परिवार उजाड़ रही है। राजनीतिक दलों की नीति और नीयत की कसौटी पर यह मुद्दा फिर परखा जा रहा है। शराब से उजड़ते परिवारों की दास्तान और सरकार की नीति पर नजर डाल रहे हैं अनिल मिश्रा….
जान से खेल रही शराब
बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर में होली के दिन एक दर्दनाक हादसा सामने आया। शहर के तीन युवा व्यवसायियों की कार पेड़ से टकरा गई जिसमें दो की मौत हो गई। इस हादसे से शहर में शोक की लहर फैल गई। बताया गया कि तीनों दोस्त होली की पार्टी के लिए गए थे और नशे में थे। शराब की वजह से यह कोई पहली मौत नहीं थी। प्रदेश में शराब पीकर वाहन चलाने की घटनाएं तो आम हैं ही, नशे में हत्या और अन्य अपराध भी बहुत हो रहे हैं।
इसी साल 2 फरवरी को सुकमा जिले के कुकानार के ढोढरेपाल में 25 साल के मुचाकी सन्ना ने शराब के नशे में अपने 45 वर्षीय पिता मुचाकी सुकड़ा की फावड़ा मारकर हत्या कर दी। इससे पहले 28 जनवरी को कांकेर जिले के दुर्गूकोंदल में शराबी पिता की हरकतों से परेशान होकर 16 साल की बेटी ने उसका गला घोंट दिया। 31 जनवरी को नया रायपुर में कार के अनियंत्रित हो जाने से तीन युवकों की दर्दनाक मौत हो गई।
18 जनवरी को बस्तर के दरभा ब्लॉक के एक स्कूल में शिक्षक नशे में धुत होकर पहुंच गया। नाराज बच्चों ने पहले तो उसे जमकर पीटा फिर सस्पेंड भी करा दिया। प्रदेश में शराब की वजह से घरेलू हिंसा की घटनाओं में भी हर रोज इजाफा हो रहा है। शराब की वजह से हो रहे हादसों और अन्य अपराधों से त्रस्त महिलाओं ने दो साल पहले शराबबंदी के लिए व्यापक आंदोलन चलाया था। इन आंदोलनों में देश के जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता भी पहुंचे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार भी यहां शराबबंदी का समर्थन करने पहुंच चुके हैं। शराबबंदी विधानसभा चुनाव के पहले और चुनाव के दौरान भी बड़ा मुद्दा रहा, हालांकि अब तक शराबबंदी के नाम पर समितियों के गठन से ज्यादा न पिछली सरकार कर पाई थी न वर्तमान सरकार करती दिख रही है।
विरोध बढ़ा तो ले ली दुकान
प्रदेश में साल दर साल शराब पीने वालों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। अप्रैल 2017 से पहले प्रदेश में शराब का ठेका होता था। शराब ठेकेदार गांवगांव में कोचियों के माध्यम से अवैध शराब की सप्लाई करते रहे। कई गांवों में ऐसी जगहों पर शराब दुकानें खोली गई थीं कि महिलाओं का सड़क से चलना दूभर हो गया। इसके खिलाफ जमकर आंदोलन हुए। कई जगहों पर महिलाओं ने लाठी उठा ली और शराब ठेकेदार के पंडों से सीधे मोर्चा ले लिया। बवाल लगातार बढ़ता गया तो तत्कालीन भाजपा सरकार को शराबबंदी की दिशा में कदम उठाना पड़ा। सरकार ने शराबबंदी का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठन किया। इसके बाद अप्रैल 2017 से सरकार ने आबकारी नीति में बदलाव किया और शराब दुकानों का संचालन अपने हाथ में ले लिया।
नियम बदले पर कम नहीं हुई कमाई
शराब से कमाई साल दर साल बढ़ती जा रही है। सरकारी दुकानों का समय घटाया गया है। प्रति व्यक्ति शराब देने का कोटा भी तय कर दिया गया है। इसका नतीजा यह हुआ कि दुकानों पर सुबह से रात तक भीड़ उमड़ रही है।
कमेटी पर कमेटी, नतीजा सिफर
शराबबंदी पर निर्णय लेने के लिए पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने शराबबंदी वाले राज्यों का दौरा कर रिपोर्ट दी। जब तक रिपोर्ट आती तब तक सरकार बदल चुकी थी। कांग्रेस की नई सरकार ने पुरानी सरकार की कमेटी की रिपोर्ट को खारिज कर दिया। अब सरकार ने एक की जगह तीन कमेटियों का गठन किया है। एक कमेटी राजनीतिक है जिसमें सभी दलों के लोग सुझाव देंगे। एक कमेटी सामाजिक है जिसमें सामाजिक संगठनों से चर्चा की जाएगी। इसके अलावा तीसरी कमेटी विशेषज्ञों की है जो राज्यों का दौरा कर नई रिपोर्ट तैयार करेगी।
शराबबंदी की राजनीति
छत्तीसगढ़ में सरकारी शराब की 702 दुकानें हैं। इनमें लगभग आधी देसी शराब की और आधी अंग्रजी शराब की हैं। पिछली सरकार दबाव में बहुत थी लेकिन शराबबंदी का निर्णय नहीं ले पाई। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में पूर्ण शराबबंदी का वादा किया लेकिन सरकार बनाने के बाद इस मुद्दे पर गोलमोल जवाब दे रही है। सरकार कह रही कि यहां आदिवासी समाज में शराब की परंपरा है। सभी से बात करेंगे तब निर्णय लेंगे। इधर भाजपा खुद भले ही शराब बंद नहीं कर पाई थी। अब वह इसी मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने में जुटी हुई है।