रायपुर। छत्तीसगढ़ में पिछले तीन लोकसभा चुनाव के नतीजे भले ही एकतरफा भाजपा के पक्ष में रहे हैं, इस बार कांग्रेस के पास लड़ाई रोचक बनाने के पर्याप्त कारण हैं। कांग्रेस अब प्रदेश की सत्ता में है। विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने कांग्रेस से अधिक उम्मीदें पाल कर बंपर जीत दिलाई। इससे लोकसभा चुनाव में विधानसभा चुनाव जैसे परिणाम का दबाव भी कांग्रेस पर है।
यही कारण है कि कांग्रेस आलाकमान ने यहां की सभी 11 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है। हालांकि कांग्रेस कितनी सीट जीत पाएगी यह इस बात से तय होगा कि सरकार बनने के बाद जनता से किए गए कितने वादे इमानदारी से पूरे किए गए।
एक तरफ मोदी सरकार की पांच साल उपलब्धियों को लेकर भाजपा जनता के बीच जाने की तैयारी कर रही है तो वहीं कांग्रेस सिर्फ दो महीने की अपनी सरकार के कामकाज को आधार बना रही। यानी कांग्रेस 60 महीने बनाम 60 दिन पर चुनाव मैदान में उतर रही है।
20 दिसंबर को बनी थी कार्ययोजना
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मंत्रालय जाकर मुख्य सचिव को घोषणापत्र सौंपा था। 20 दिसंबर को मंत्रालय में वरिष्ठ अफसरों की बैठक हुई जिसमें सभी विभागों की कार्ययोजना बनाई गई। सहकारिता, खाद्य, ऊर्जा, कौशल उन्न्यन एवं तकनीकी शिक्षा तथा रोजगार, स्वास्थ्य, स्कूल शिक्षा, नगर प्रशासन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, वन, महिला एवं बाल विकास, वित्त, समाज कल्याण, आबकारी, राजस्व, जल संसाधन, उद्योग, कृषि, पशुधन, सामान्य प्रशासन, गृह, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यटन आदि तमाम विभागों को लक्ष्य दिया गया था। कई योजनाएं शुरू हुईं कई छूट गईं।
दो महीने में सरकार ने क्या किया
किसानों का कर्ज माफ किया, धान का समर्थन मूल्य बढ़ाया। कर्मचारियों को 9 फीसद डीए दिया। पुलिस कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश। 15 हजार शिक्षकों की भर्ती की घोषणा। गोठान के लिए बजट आवंटन। आबकारी नीति के लिए अध्ययन दल बनाकर मामले को टाला गया है। बेरोजगारी भत्ता का वादा पूरा तो नहीं हुआ पर इसके लिए भी कमेटी बनाई गई है।
यह नहीं कर पाए
किसानों को धान का दो साल का बकाया बोनस, हर परिवार को 35 किलो चावल देने की योजना, 25 सौ रुपये बेरोजगारी भत्ता, यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम, शिक्षाकर्मियों का नियमितीकरण, संपत्तिकर में राहत, वनाधिकार पट्टा वितरण, कर्मचारियों को चार स्तरीय वेतनमान, एक हजार और 15 सौ रुपये पेंशन देने की योजना, शराबबंदी, किसान पेंशन, लोकपाल की नियुक्ति, संविदा और अनियमित कर्मचारियों का नियमितीकरण, पुलिस कल्याण योजना, चिटफंड कंपनियों पर कार्रवाई, पत्रकारों-वकीलों के लिए विशेष सुरक्षा कानून आदि ऐसी घोषणाएं हैं जिनपर काम नहीं हो पाया है।
दिन-रात काम किया फिर भी कम पड़ गया समय
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा की तैयारी के लिए बेहद कम समय बचता है। दिसंबर में सरकार बनी तो कुछ दिन तो सीएम, मंत्री विधायकों को अपने क्षेत्र में ही रहना पड़ा। इसके बाद दिन रात काम शुरू हुआ। रोज देर रात तक निर्णय लिए जाते रहे। आधी रात को ट्रांसफर आर्डर निकाले गए।
बड़ी योजनाओं की घोषणा देर रात तक की जाती रही। शराबबंदी नहीं हो पाई तो अध्ययन दल बनाकर संदेश देने की कोशिश की गई। बेरोजगारी भत्ता के मामले में भी यही किया गया।
सरकार ने यह बताने की पूरी कोशिश की है कि वादे पूरे होंगे। दो महीने में सबकुछ तो नहीं किया जा सकता। आचार संहिता लगने से पहले के अंतिम दो दिन तो छत्तीसगढ़ सरकार के लिए बेहद मुश्किल रहे। दिन रात मंत्रालय खुला रहा। फिर भी कुछ काम नहीं हो पाए हैं। देखना है कि जनता 60 महीने बनाम 60 दिन को किस नजरिए से देखती है।