नई दिल्ली – भारत ने पाकिस्तानी सत्ता और सेना के अत्याचार से पीड़ित पूर्वी पाकिस्तान की जनता को अपना सहयोग देकर बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष था जिसमें पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। इसका आरंभ पश्चिमी पाकिस्तान और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के बीच सशस्त्र संघर्ष के बीच 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान द्वारा भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर रिक्तिपूर्व हवाई हमले किए जाने के परिणामस्वरूप भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के समर्थन देने के निर्णय के कारण हुआ। जिसमें पाकिस्तान को अप्रत्याशित पराजय का सामना करना पड़ा। इसमें भारतीय सेना द्वारा 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक बंदी बना लिए गए और पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान के नियंत्रण से मुक्त होकर बांग्लादेश बन गया।
ये युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक युद्ध माना जाता है। इसीलिए देश भर में भारत की पाकिस्तान पर जीत के उपलक्ष में 16 दिसंबर को ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वर्ष 1971 के युद्ध में तकरीबन 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और लगभग 9,851 घायल हुए। युद्ध के 8 महीने बाद अगस्त 1972 में भारत और पाकिस्तान ने शिमला समझौता 1972 किया। इसके अंतर्गत बंदी बनाए गए पाकिस्तानी सैनिकों को वापस पाकिस्तान भेज दिया गया था।
भारत की पराक्रमी सेना के साहस ने पाकिस्तान की सेना के 97,368 सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए विवश किया। इस गौरवशाली दिवस पर स्वयं सेवकों के बल और सामर्थ्य में वृद्धि करने हेतु संघ प्रतिवर्ष 16 दिसम्बर को प्रहार महायज्ञ का आयोजन करता है। इस दिन स्वयंसेवकों को यह स्मरण दिलाया जाता है कि महाराणा प्रताप की भुजाओं में इतना बल था कि उन्होंने तलवार के एक ही वार से बहलोल खान को जिरह-बख्तर, घोड़े सहित काट डाला। रानी दुर्गावती युद्ध के मैदान में घोड़े की लगाम मुँह में थाम कर दोनों हाथों में तलवार लेकर उतरी थीं और शत्रुओं को नाकों चने चबवा दिए। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी तलवार के बल पर आदिलशाही और मुगलशाही से टक्कर लेते हुए हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की थी। हम उन्हीं महान पूर्वजों के वंशज हैं। हमारी भुजाओं में वैसा ही बल चिर स्थाई रहे, हम क्षमतावान बने रहें।