गरियाबंद – आज देश में किसी भी तरह की घटना या भ्रष्टाचार और घोटाले जब होती है और सरकार एवं प्रशासनिक स्तर इन घटनाओं की जांच शुरू की जाती है तो कुछ घटनाओं पर तो सही जांच और न्यायिक कार्यवाही व न्यायपालिका का कार्य सही रूप में देखने को भी मिलती है। वहीं कई घटनाओं पर जांच एजेंसियों पर आरोप भी देखने को मिलता है और वह घटना क्रम का अंत में कोई निष्कर्ष नहीं निकलता है और अंत में उस व्यक्ति और परिवार को कोई न्याय नहीं मिल पाता है और न्याय की आस वहीं दम तोड़ देती है। हम अगर बात करें बिलासपुर के सरकंडा थाने क्षेत्र की जहां लगभग दिसंबर 2010 में सुशील पाठक नाम के युवा पत्रकार जिसकी दिन दहाड़े गोलीमार कर हत्या कर दी गई। फिर हुआ जांच का सिलसिला जारी, शुरुआत में स्थानीय पुलिस जांच में जुटी उसके जांच से संतुष्ट नहीं होते हुए पत्रकार संगठनों और परिजनों ने देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई से जांच की मांग की जिस पर सरकार और प्रशासन ने सीबीआई जांच का आदेश दिया और फिर एक बार सीबीआई ने जांच शुरू की लेकिन कुछ महीने बाद सीबीआई के ही जांच अधिकारी के ऊपर रिश्वत लेने का आरोप लगा। अब सीबीआई के अफसर की रिश्वत की जांच और पत्रकार शुशील पाठक की हत्याकांड दोनों का ही जांच चलता रहा और इस हत्याकांड में किसी बादल खान नाम का आरोपी को भी गिरफ्तार किया गया था लेकिन समय के साथ इस घटनाक्रम की जांच भी थम सा गया और उसके परिवार को उचित न्याय नहीं मिल पाया और न्याय की आस वहीं खत्म हो गया। और स्व. पत्रकार सुशील पाठक जिसे देश के चौथे स्तंभ के रूप में जाना जाता है उसे न्याय नहीं मिल पाया।
एक बार फिर 23 जनवरी 2011 को छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले अंतर्गत छुरा नगर के युवा पत्रकार उमेश राजपूत को उनके ही स्थित निवास पर पांच लोगों की उपस्थिति में शाम लगभग 6.30 बजे थाने के कुछ ही फलांग की दुरी पर रिहायशी इलाके में दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। और फिर एक बार स्थानीय पुलिस का जांच का सिलसिला शुरू हुआ लगातार स्थानीय पुलिस का जांच लगभग चार वर्षों तक चलता रहा लेकिन अपराधियों की गिरफ्तारी नहीं होने के चलते परिजनों ने बिलासपुर उच्च न्यायालय का रूख किया और याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की जिस पर न्यायालय ने सीबीआई जांच का आदेश जारी करते हुए आदेशित किया कि सीबीआई इस हत्याकांड की जांच जल्द पूरा कर सील बंद लिफाफे में उच्च न्यायालय में जांच रिपोर्ट पेश करे।
वहीं दिल्ली से सीबीआई की टीम छुरा पहुंच एक बार नये सिरे से पत्रकार उमेश राजपूत हत्याकांड की जांच में जुटी और लगभग तीन सौ लोगों से पुछताछ की और दो लोगों को आरोपी मानकर रिमांड में लिया। और रायपुर लेकर पहुंचे जहां सीबीआई के अनुसार एक आरोपी ने रिमांड पर ही फांसी लगाकर बाथरूम में आत्महत्या कर ली और दुसरा आरोपी पर जेल से रिहा हुए। और लगभग नौ सौ पन्नों की चार्जशीट सीबीआई ने अदालत में पेश किया। और पिछले दस वर्षों से इस मामले की सुनवाई विशेष सीबीआई अदालत रायपुर में चल रहा है। एक तरफ इस हत्याकांड में पुलिस विभाग के उस समय छुरा थाने में पदस्थ कुछ पुलिस व जांच अधिकारियों पर पत्रकार उमेश राजपूत हत्याकांड से जुड़े साक्ष्य थाने से गायब होने का आरोप भी लगा है पर अभी तक न संबंधित किसी पुलिस ऑफिसर्स की गिरफ्तारी हुई और न ही किसी अपराधी को सजा दिला पाने में सीबीआई सफल हुई है और न ही उच्च न्यायालय बिलासपुर में अभी तक सील बंद लिफाफे में उक्त घटना की रिपोर्ट जमा कर पाई है।
ऐसे देश में अनगिनत घटनाएं है जो लड़ने में आगे आते हैं वह लोगों के सामने आता है और जो वकील लगाकर लड़ने में सक्षम नहीं होते ऐसे कई मामले शुरुआत में ही दब जाते हैं। एक तरफ देश के सर्वोच्च समझे जाने वाले सीबीआई जैसे जांच एजेंसी पर भी समय समय पर कई आरोप लगते रहे हैं और जिस राजनीतिक पार्टी की सत्ता रही हो उसके ऊपर सीबीआई का दुरूपयोग का आरोप भी सुनने और देखने को मिलता रहा,जिस पर सुप्रीम कोर्ट जैसे देश की सर्वोच्च अदालत ने भी सीबीआई जैसे जांच एजेंसी को पिंजरे का तोता न बने जैसे टिप्पणी की थी। और आगे आने वाले दिनों में इन जांच एजेंसियों की प्रजातंत्र में कितनी विश्वसनीयता रहेगा ये आने वाले दिनों में ही पता चल पाएगा। एक तरफ हम अगर राजस्व विभाग के मामलों की बात करें तो आज भी ग्रामीण अंचलों में सैकड़ों किसानों की ये समस्या देखने को मिलता है कि जिस समय बंदोबस्त का कार्य हुआ उस समय उनके जमीनों का राजस्व रिकार्ड में त्रुटि हो गई है जिसे सुधरवाने के लिए आज ही राज्स्व विभाग के तहसील और अनुविभागीय कार्यालय के चक्कर लगाने मजबूर हैं लेकिन अभी कई वर्ष बीत जाने के बाद भी पुरे किसानों का रिकॉर्ड सुधार नहीं हो पाया है और वे वकील के माध्यम से खर्च कर राजस्व रिकार्ड सुधार करवाने में चक्कर लगाने मजबूर हैं, आखिर सवाल यह उठता है कि वह जमीन की रिकॉर्ड की ग़लती क्या किसान की है आखिर इन गलतियों का जवाबदेह किसकी होनी चाहिए? किसान क्यों परेशान हों?
अगर हम लगभग दो साल पहले ही राजिम क्षेत्र के ग्राम तरीघाट की बात करें तो एक किसान घांसीराम जो पिछले चालीस पैंतालीस वर्षों से दो एकड़ जमीन पर काबिज था और कृषि कार्य कर अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे जिसे गांव के ही पंचायत द्वारा गोठान बनाने के नाम पर उनके तैयार धान की फसल को प्रशासन की उपस्थिति में मवेशियों से चराई कर दिया गया जिससे तंग आकर आत्महत्या की कोशिश की,जिसे कुछ समाज सेवी और मिडिया कर्मियों के सहयोग से त्वरित ईलाज के बाद उच्च न्यायालय बिलासपुर से उसके जीवन यापन जमीन पर गोठान बनाने से रोक हेतु आदेश लाया गया जिसके बाद भी उनकी परेशानियां कम नहीं हुई और अंत में उनकी मृत्यु हो गई और आज उनकी पत्नी अकेले उसी जमीन को रेग में किसी दूसरे को देकर जीवन गुजारने मजबूर हैं आखिर ऐसे गरीब परिवार की बर्बादी का जिम्मेदार कौन? इसी गांव का एक गरीब आदमी जीवन साहू जिसका प्रधानमंत्री आवास सुची में आवास स्वीकृत हुआ है जो पिछले छह माह से पंचायत, जनपद से लेकर कलेक्टर आफिस तक दौड़ने मजबूर हैं और उसे यह हवाला दिया गया कि आपके पास भूमि स्वामी जमीन नहीं है गांव में आबादी जमीन उसे आवास बनाने के लिए उपलब्ध नहीं हुआ तो उसके ससुराल के लोग उसे आवास निर्माण के लिए जमीन देने तैयार हैं पर उनका जियो टेकिंग अभी तक नहीं हो पाया और जनपद पंचायत फिंगेश्वर सीईओ का कहना है कि अगर उनके ससुराल वाले जो जमीन दे रहे हैं ओ भी शासकीय होगा तो नहीं बन पायेगा, जबकि ग्रामीण इलाकों में गांव आबादी जमीन पर ही बसा हुआ है और सभी लोग आवास निर्माण उसी जमीन पर कर रहे हैं फिर उस गरीब आवासहीन व्यक्ति के लिए अलग नियम क्यों?
लोकतंत्र में क्या आज की ऐसी व्यवस्था तंत्र का काम उचित प्रतीत होता है? क्या किसी पिड़ित एवं परिवार को उनके इस दुनिया से विदा हो जाने के बाद भी न्याय नहीं मिल पाना हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के उचित है? आखिर इसकी जिम्मेदारी हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार, प्रशासन, न्यायपालिका या किसकी होनी चाहिए? और आखिर इस प्रकार की समस्यायों को दुर करने में हमारा व्यवस्था तंत्र कब सफल हो पायेगा?