कांग्रेस ने बकायदा एक रिपोर्ट जारी करके कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन समारोह को बीजेपी-आरएसएस ने पॉलिटिक्ल इवेंट बना दिया है. चुनाव के सियासी लाभ के लिए आधे-अधूरे मंदिर का उद्घाटन किया जा रहा है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल नहीं होने से कांग्रेस को फायदा होगा या फिर सियासी नुकसान?
नई दिल्ली – अयोध्या में 500 साल के बाद भव्य राम मंदिर बन कर तैयार हो रहा है, जिसका उद्घाटन 22 जनवरी को होगा. रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने से कांग्रेस इनकार कर दिया है, जिसके बाद अब यह बात साफ हो गई है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी समेत कांग्रेस नेता शिरकत नहीं करेंगे. कांग्रेस ने बकायदा एक रिपोर्ट जारी करके कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन समारोह को बीजेपी-आरएसएस ने पॉलिटिक्ल इवेंट बना दिया है. चुनाव के सियासी लाभ के लिए आधे-अधूरे मंदिर का उद्घाटन किया जा रहा है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल नहीं होने से कांग्रेस को फायदा होगा या फिर सियासी नुकसान?
रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 22 जनवरी को होने वाले रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और अधीर रंजन चौधरी को निमंत्रण दिया था. इसके बाद से ही यह सवाल बना हुआ था कि कांग्रेस नेता 22 जनवरी को अयोध्या जाएंगे कि नहीं? इस संबंध में कांग्रेस ने बुधवार को बकायदा एक पत्र लिखकर साफ कर दिया है कि सोनिया-खरगे और अधीर रंजन प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि भगवान राम की पूजा-अर्चना करोड़ों लोग करते हैं. बीजेपी और आरएसएस के नेताओं द्वारा अधूरे मंदिर का उद्घाटन स्पष्ट रूप से चुनावी लाभ के लिए किया गया है. ऐसे में स्पष्ट रूप से आरएसएस और बीजेपी कार्यक्रम के निमंत्रण को सम्मानपूर्वक अस्वीकार कर दिया है. कांग्रेस ही नहीं बल्कि INDIA गठबंधन के घटक दल भी 22 जनवरी के कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर रहे हैं.
राम मंदिर मुद्दे के इर्द-गिर्द सेट हो रहा एजेंडा
कांग्रेस के लिए यह फैसला लेना आसान नहीं था, क्योंकि लोकसभा चुनाव सिर पर है और राम मंदिर मुद्दे के इर्द-गिर्द 2024 का सियासी एजेंडा सेट किया जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस के लिए असमंजस की स्थिति बनी हुई थी कि अयोध्या कार्यक्रम में सोनिया-खरगे को शिरकत करना चाहिए कि नहीं. कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को निमंत्रण दिए जाने के बाद से कांग्रेस के लिए इसे एक बड़ी मुश्किल के तौर पर देखा जा रहा था. निमंत्रण मिलने के बाद जब भी मीडिया इस पर सवाल पूछे गए तो कांग्रेस की ओर से बार-बार कहा गया कि इसपर बाद में फ़ैसला लिया जाएगा, लेकिन आखिरकार बुधवार को अपना फैसला ले ही लिया है कि वो शरीक नहीं होगी.
न्योते को ठुकराकर कांग्रेस ने उठाया सियासी जोखिम
लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच राम मंदिर उद्घाटन का निमंत्रण ठुकरा कर सियासी जोखिम उठा लिया. बुधवार कांग्रेस ने इसे बीजेपी और आरएसएस का कार्यक्रम बता दिया. कांग्रेस ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में नहीं जाने का कुछ कांग्रेस नेता ही विरोध कर रहे हैं तो बीजेपी ने उसे हिंदू विरोधी कठघरे में खड़े करने में जुट गई है. ऐसे में कांग्रेस के लिए मुश्किल यह थी कि यदि वह राम मंदिर के कार्यक्रम में जाने का फैसला करती तो पार्टी की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठता और यदि नहीं जाने का फ़ैसला करती तो बीजेपी कांग्रेस को हिंदू विरोधी पार्टी के तौर पर प्रचारित करती. कांग्रेस ने अपनी खुद की धर्मनिरपेक्ष छवि को बचाए रखने के लिए यह फैसला है, लेकिन अब लोकसभा चुनाव के तपिश के बीच बीजेपी ने कांग्रेस को हिंदू विरोधी पार्टी के तौर पर नैरेटिव गढ़ना शुरू कर दिया ताकि बहुसंख्यक वोटों को एकजुट रखा जा सके.
22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा
अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का क्रेडिट लेने के लिए बीजेपी किसी तरह का कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है. बीजेपी-संघ से जुड़े नेता घर-घर जाकर रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए अक्षत चावल बांट रहे हैं. पीएम मोदी कह चुके हैं कि 22 जनवरी को दिवाली मनाई जाए यानि हर घर दिए जलाए जाएं. इसके अलावा बीजेपी ने प्लान बनाया है कि देश की सभी लोकसभा क्षेत्र से लोंगो को 22 जनवरी के बाद अयोध्या में रामलला के दर्शन कराए जाएं, जिसके लिए बकायदा ट्रेन और बसें तक बुक कर ली गई हैं. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा राम मंदिर को लेकर पार्टी नेताओं की तीन बड़ी बैठकें कर चुके हैं और राममय माहौल बनाने की रणनीति है. इस तरह से समझा जा सकता है कि बीजेपी ने राम मंदिर को लेकर किस तरह से माहौल अभी से ही बना दिया है. ऐसे में कांग्रेस का राम मंदिर उद्घाटन में शिरकत नहीं करने का फैसला सियासी तौर पर घातक हो सकता है?
कांग्रेस को हिंदू विरोधी बताने में जुट गई BJP
बीजेपी ने कांग्रेस को हिंदू विरोधी बताने में जुट गई है. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि कांग्रेस का स्वभाव, चरित्र और चेहरा कभी नहीं बदल सकता. ये वही कांग्रेस है, जिसने शपथ पत्र देकर श्री राम को काल्पनिक बताया था. ये वही कांग्रेस है, जिसने वादा किया था कि हम उसी स्थान पर दोबारा बाबरी मस्जिद बनवाएंगे. साथ ही केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि कांग्रेस का असली चेहरा सामने आ गया है. उन्होंने कहा कि प्रभु राम विरोधी कांग्रेस का चेहरा देश के सामने आ गया है. केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि कांग्रेस को इस पर पछतावा होगा. कांग्रेस की ओर से यह सवाल उठाया गया कि बीजेपी राम मंदिर का फायदा उठाना चाहती है. अब बीजेपी के कई नेता यह पूछ रहे हैं कि कांग्रेस न जाकर कौन सा फायदा उठना चाहती है.
कांग्रेस को जवाब देना होगा मुश्किल
राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि बीजेपी नेताओं के जैसे बयान सामने आ रहे हैं, उससे एक बात क्लियर है कि चुनावों में भी बीजेपी कांग्रेस को राम विरोधी और हिंदू विरोधी के तौर पर प्रचारित करेगी और इसका जवाब कांग्रेस को देना मुश्किल होगा. कांग्रेस पहले से अपने दामन पर लगे हिंदू विरोधी और मुस्लिम परस्ती का दाग अभी तक धो नहीं पाई है. ऐसे में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा में न जाकर एक फिर से बीजेपी के हाथों में मौका दिया है. बीजेपी यही चाहती भी थी, जिसके चलते निमंत्रण दिया गया. कांग्रेस नेताओं के जाने से भी कोई लाभ नहीं मिलने वाला था, लेकिन न जाकर उससे बड़ा नुकसान मोल ले लिया है.
राम मंदिर का मुद्दा कभी कांग्रेस का था नहीं
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवाई कहते हैं कि निमंत्रण मिलने के बाद से कांग्रेस उहापोह की स्थिति में थी कि क्या किया जाए. राम मंदिर का मुद्दा कभी कांग्रेस का था नहीं. यह मुद्दा शुरू से बीजेपी का था और मंदिर निर्माण के साथ ही इसका श्रेय पीएम मोदी को दिया जा रहा है. कांग्रेस नेताओं ने राम मंदिर कार्यक्रम में भाग लेने के ‘गुणा-भाग’ पर काम किया. इसमें यह बात सामने निकलकर आई कि एक फैसले से पार्टी को केरल में झटका लग सकता है और उसके लोकसभा सदस्यों की संख्या में गिरावट आ सकती है. इसके अलावा पार्टी को कर्नाटक और तेलंगाना में भी नुकसान की संभावना दिख रही थी, जहां कांग्रेस को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है.
उन्होंने बताया कि कांग्रेस नेताओं ने तर्क दिया कि ‘मोदी-बीजेपी-आरएसएस शो’ में पार्टी नेताओं की मौजूदगी से मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और अन्य उत्तरी, पश्चिमी तथा अन्य मध्य राज्यों में पार्टी कोई खास फायदा नहीं होगा जहां बीजेपी-कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है. कांग्रेस ने यह भी देखा कि INDIA गठबंधन के सहयोगी दल अयोध्या जाने से इनकार कर चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस ने स्टैंड लिया है कि वो शरीक नहीं होगी. अयोध्या के कार्यक्रम को बीजेपी ने राजनीतिक आयोजन बना दिया है और एक राजनीतिक आयोजन में न जाने से हिंदू विरोधी नहीं बन जाएंगे. इस बात को भी कांग्रेस समझ रही है, लेकिन उसे पता है कि अयोध्या में जाने से कोई बहुत बड़ा सियासी लाभ नहीं मिलना है, क्योंकि पूरा कार्यक्रम बीजेपी ने हाईजेक कर रखा है. लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए स्टैंड लेना था और उसके सामने बीच का रास्ता नहीं था.
वोटबैंक पर नहीं पड़ेगा बहुत ज्यादा फर्क
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि कांग्रेस ने अयोध्या न जाने का जो स्टैंड लिया है, उससे बहुत ज्यादा कोई उसके वोटबैंक पर फर्क नहीं पड़ने वाला है. रामलला के प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम के जरिए बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को चार्ज करना चाहती है. राम मंदिर के मुद्दे से अब किसी नए वोटबैंक पर कोई भी असर नहीं पड़ने की संभावना नहीं दिख रही है. ऐसे में कांग्रेस ने सारे नफा-नुकसान को देखकर अपनी धर्मनिरपेक्ष वाली वैचारिक छवि के साथ खड़ी रहने का फैसला किया है. ये बात जरूर है कि बीजेपी इसे लेकर कांग्रेस को हिंदू विरोधी रूप में प्रचारित करने का काम करेगी, लेकिन यह बहुत पुराना मुद्दा हो चुका है. कार्यक्रम में शामिल होने से के इनकार के बाद आम चुनाव से पहले कांग्रेस और बीजेपी के बीच वाद-विवाद बढ़ेगा. बीजेपी परंपरागत रूप से कांग्रेस पर अल्पसंख्यक भावनाओं के अनुरूप काम करने का आरोप लगाएगी, लेकिन उससे कोई बहुत बड़ा फर्क नहीं पढ़ने वाला.
कांग्रेस को राम विरोधी के तौर पर प्रचारित करेगी BJP
सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि बीजेपी अब कांग्रेस को राम विरोधी और हिंदू विरोधी के तौर पर प्रचारित करेगी, लेकिन कांग्रेस इससे काफी पहले से जूझ रही है. बीजेपी के हिंदुत्व के सामने कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव आजमाया, लेकिन सफल नहीं रहे. राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक मंदिर में जाकर दर्शन किए. हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में भी कमलनाथ से लेकर भूपेश बघेल तक सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चले, लेकिन मतदाताओं ने बुरी तरह ठुकरा दिया. कांग्रेस इस बात को समझ गई है कि बीजेपी के हिंदुत्व के जवाब में उसके पिच पर उतरने से काम नहीं चलेगा बल्कि अपना खुद का नया एजेंडा सेट करना होगा, जिसे चलते कांग्रेस ने यह फैसला लिया है. 2024 के चुनाव में यह पता चलेगा कि कांग्रेस को अयोध्या न जाने का फैसला सियासी तौर पर मुफीद साबित होता या फिर सियासी नुकसान बनेगा?