मोहन भागवत ने कहा कि सदियों से भारत वासियों ने पूरी दुनिया को कुटुंब के तौर पर देखा है जो सभी भेदभाव को खत्म करने वाली भावना है.
नई दिल्ली – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि भारत 5,000 वर्षों से एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र रहा है. बुधवार (11 अक्टूबर) को एक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में शामिल होने दिल्ली पहुंचे भागवत ने लोगों से एकजुट रहने और विश्व में मानव व्यवहार का सर्वोत्तम उदाहरण पेश करने का आह्वान किया.
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक,आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी आर हरि द्वारा लिखित पुस्तक ‘पृथ्वी सूक्त – एन ओड टू मदर अर्थ’ के विमोचन के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में भागवत ने लोगों से अपनी मातृभूमि के प्रति भक्ति, प्रेम और समर्पण रखने की अपील करते हुए कहा, ”हम मातृभूमि को हमारी राष्ट्रीय एकता का एक अनिवार्य घटक मानते हैं.’
‘हमारी 5,000 साल पुरानी संस्कृति धर्मनिरपेक्ष है’
आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘हमारी 5,000 साल पुरानी संस्कृति धर्मनिरपेक्ष है. सभी ‘तत्व ज्ञान’ में, यही निष्कर्ष है. हम सदियों से मानते रहे हैं कि पूरी दुनिया एक परिवार है, यह हमारी भावना है. यह कोई सिद्धांत नहीं है. इसे जानें, महसूस करें और फिर उसके अनुसार व्यवहार करें.”
नई दिल्ली के डॉ. आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि भारत का मिशन दुनिया को यह प्रदर्शित करना है कि विविधता और एकता विरोधाभासी नहीं हैं; इसके बजाय, एकता विविधता के भीतर पनपती है.
“हम पृथ्वी के मालिक नहीं, पुत्र”
पृथ्वी के संरक्षण की नसीहत देते हुए भागवत ने कहा, पृथ्वी हम सबकी माता है. हम उसके पुत्र हैं, मालिक नहीं. हम भारतीय लोगों को जीवन से पूरी दुनिया को इसका संदेश देना है. उन्होंने कहा दुनियाभर में नेशन स्टेट हैं, यानी स्टेट है तभी नेशन है. लेकिन, हम एक हैं क्योंकि हमने अपने बीच एकता के आधार खोजे हैं. ब्रिटेन भाषा के आधार पर एक है, जबकि अमेरिका में आर्थिक हित के आधार पर एकता है. जबकि, हमारी मातृभूमि समृद्ध है. चारों ओर से सुरक्षित है.
मोहन भागवत ने कहा- पुराने समय में भारत में कोई भी आ नहीं सकता था. इसलिए हमें न तो बाहर और न ही अपने भीतर झगड़ा करने की जरूरत पड़ी. इसलिए हमने सकारात्मकता की ओर कदम बढ़ाए. हम एक हैं, यही वस्तुस्थिति है. हम मानते हैं कि सारा जगत ही अपना कुटुंब है. यहीं पर सारी तृष्णा समाप्त होती है.
केरल के राज्यपाल भी हुए शामिल
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी कार्यक्रम में शामिल हुए. उन्होंने पुस्तक के लेखक रंगा हरि के साथ अपनी मुलाकातों और विचार-विमर्श के कई पहलुओं को बयां किया. उन्होंने कहा कि ज्ञान की प्राप्ति ही जीवन का उद्देश्य है. आरिफ मोहम्मद ने इस किताब की प्रस्तावना भी लिखी है.