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रामायण की कहानी: देवी सीता ने किया था अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान, शास्‍त्रों में है इसका जिक्र

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क्या आपको पता है कि देवी सीता ने अपने ससुर राजा दशरत का श्राद्ध किया था?

हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान का विशेष महत्व होता है. पितृ पक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है, जिससे पूर्वजों के आशीर्वाद से वंश तरक्की करता है. वैसे तो पिंडदान का अधिकार बेटे का होता है, लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान नहीं किया था. वाल्मिकी रामायण में सीता माता द्वारा पिंडदान देकर राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है. हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान का विशेष महत्व होता है और मान्यता है कि पुत्र ही माता-पिता का पिंडदान करता है. उसके न रहने पर ये अधिकार नाती-पोते पत्नी या बहू को होता है. वाल्मिकी रामायण में जिक्र है कि सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था और राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिला था. तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्या है पूरी कहानी.

सीता माता ने किया था राजा दशरथ का पिंडदान

बाल्मीकि रामायण में माता सीता द्वारा पिंडदान करने का उल्‍लेख मिलता है. वनवास के दौरान जब प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान गया पहुंचे तो वे श्राद्ध के लिए सामग्री लेने गए हुए थे. इस बीच माता सीता को राजा दशरथ ने दर्शन हुए और उन्होंने माता सीता से कहा कि वे स्‍वयं माता सीता के हाथों पिंडदान करवाना चाहते हैं. राजा दशरथ की इस इच्‍छा को पूरा करने के लिए माता सीता ने फल्गु नदी, वटवृक्ष, केतकी फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाया और अपने पिता समान ससुर राजा दशरथ का पिंडदान कर दिया. इससे राजा दशरथ अत्‍यंत प्रसन्‍न हुए और उन्‍हें आशीष देकर मोक्ष को प्राप्‍त हो गए. इस तरह पुत्र की अनुपस्थिति में पुत्र वधु को भी पिंडदान और श्राद्ध का अधिकार शास्त्रों में दिया गया है.

जानिए किन स्थितियों में महिलाओं को मिलता है ये अधिकार

गुरूण पुराण में कहा गया है कि पितरों के निमित्‍त किए जाने वाले श्राद्ध पूर्वजों के प्रति श्रद्धा को व्‍यक्‍त करने के लिए होते हैं. पूर्वज आपके भोजन के नहीं, श्रद्धाभाव के भूखे हैं. शास्‍त्रों में श्राद्ध का पहला अधिकार पुत्र को दिया गया है. लेकिन जिस परिवार में कोई पुत्र नहीं है, उस परिवार की कन्‍या पितरों के श्राद्ध को अगर श्रद्धापूर्वक करती है और उनके निमित्त पिंडदान करती है तो पितर उसे स्वीकार कर लेते हैं. इसके अलावा पुत्र की अनुपस्थिति में बहू या पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है.