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करगिल की ‘गौरव गाथा – जब भारतीय सैनिकों ने कारगिल की चोटियों पर लहराया था तिरंगा

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60 दिनों का युद्ध…वीर जवानों की शहादत और दुर्गम चोटियों पर तिरंगा…पढ़ें करगिल की ‘गौरव गाथा’ 

 हर साल भारत में 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाया जाता है. इस दिन तमाम जगहों पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और देश के वीर सपूतों के बलिदान को याद किया जाता है. आइए आपको सुनाते हैं करगिल की ‘गौरव गाथा’ 

नई दिल्ली – 26 जुलाई 2023 को भारत अपना 24वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है. ये दिन उन भारत के वीर सपूतों के साहस और शौर्य को याद करने का दिन है, जिन्‍होंने करगिल युद्ध में पाकिस्‍तान के नापाक मंसूबों को पटखनी देकर पाकिस्तानी फौज को खदेड़ दिया था और 26 जुलाई 1999 को दुर्गम पहाड़‍ियों पर तिरंगा फहराया था. इस दिन को करगिल विजय दिवस के रूप में जाना जाता है. हर साल भारत में 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाया जाता है. इस दिन तमाम जगहों पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और देश के वीर सपूतों के बलिदान को याद किया जाता है. आइए आपको सुनाते हैं करगिल की ‘गौरव गाथा’ 

चरवाहों से मिली थी घुसपैठ की जानकारी

साल 1990 से ही पाकिस्‍तान ने आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया था, लेकिन भारत ने हर बार उसे उसके नापाक इरादों का मुंहतोड़ जवाब दिया. ऐसे में पाकिस्‍तान ने भारत में घुसपैठ की योजना बनाई.  दरअसल, सर्दियों के मौसम में सैनिक ऊंची चोटियों पर अपनी पोस्ट छोड़कर निचले इलाकों में आ जाते थे. पाकिस्तान और भारतीय दोनों सेनाएं ऐसा करती थीं. लेकिन 1998 की सर्दियों में जब भारतीय सेनाएं वापस लौटीं, तब पाकिस्तानी सेना ने अपनी पोस्ट नहीं छोड़ी. पाकिस्तानी सैनिकों ने चुपके से एलओसी पार करके लद्दाख में स्थित करगिल पर कब्‍जा कर लिया. भारतीय सेना को इस घुसपैठ की जानकारी चरवाहों से मिली. चरवाहों ने पाकिस्तानी सैनिकों और घुसपैठियों को वहां देख लिया था. इसके बाद भारतीय सेना ने घुसपैठियों से अपनी जमीन को खाली कराने के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ चलाया. 

भारत और पाकिस्‍तान के बीच ये युद्ध करीब 60 दिनों तक चला. इस युद्ध में करीब दो लाख सैनिकों ने हिस्‍सा लिया था. सैकड़ों घुसपैठिए बर्फ की आड़ में छिपे थे और उन्‍होंने वहां बंकर बना लिए थे. इस युद्ध में भारी मात्रा में रॉकेट और बमों का प्रयोग किया गया था. करीब दो लाख पचास हजार गोले, बम और रॉकेट दागे गए थे. करीब 5 हजार तोपखाने के गोले, मोर्टार बम और रॉकेट 300 बंदूकें, मोर्टार और एमबीआरएल से प्रतिदिन दागे जाते थे. जिस दिन टाइगर हिल को वापस लाया गया था उस दिन 9 हजार गोले दागे गए थे. 

ऐसा कहा जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह एकमात्र युद्ध था जिसमें दुश्मन सेना पर इतनी बड़ी संख्या में बमबारी की गई थी. इस लड़ाई में 527 भारतीय जवान शहीद हुए थे. 26 जुलाई को भारत की जीत के साथ इस युद्ध का समापन हुआ था और भारत के वीर सपूतों ने तमाम मुश्किलों को पार करते हुए दुर्गम पहाड़‍ियों पर तिरंगा फहराया था.