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मणिपुर पर संसद में गतिरोध: आखिर सत्ता पक्ष राज्यसभा में नियम 267 के बजाए 176 के तहत क्यों चाहता है चर्चा!

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राज्यसभा के नियम 176 के तहत चर्चा में 4-5 सांसदों को बोलने की अनुमति मिलती है और आधे-एक घंटे की चर्चा होती है। जबकि नियम 267 के तहत होने वाली चर्चा के लिए उस दिन के कामकाज को निलंबित कर दिया जाता है और जरूरत पड़ने पर वोटिंग भी हो सकती है।

नई दिल्ली – मणिपुर को लेकर संसद में गतिरोध जारी है। विपक्ष इस मुद्दे पर चर्चा चाहता है, और रोचक है कि सत्ता पक्ष भी इस मुद्दे पर चर्चा चाहता है। लेकिन चर्चा हो नहीं पा रही है। आखिर क्यों? दरअसल इसके पछे बीजेपी नेताओं या कहें कि सत्ता पक्ष की वह चालाकी छिपी है जिसके चलते दोनों पक्षों की इच्छा के बावजूद संसद में मणिपुर पर गतिरोध बना हुआ है। बीजेपी नेता मणिपुर पर नियम 176 के तहत चर्चा करना चाहते हैं, न कि नियम 267 पर।

नियमों के इसी खेल पर पूर्व गृहमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता और संसद सदस्य पी चिदंबरम ने टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि सरकार और प्रधानमंत्री मणिपुर पर एक पूर्ण और सार्थक चर्चा से बचना चाहते हैं। प्रधानमंत्री संसद में मणिपुर पर कोई भी बयान नहीं देना चाहते, लेकिन संसद के बाहर दिए महज 36 सेकेंड के एक अनौपचारिक बयान में वह मणिपुर की बात करते हुए राजस्थान और छत्तीसगढ़ में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और यौन उत्पीड़न का जिक्र करना नहीं भूलते।

मणिपुर मुद्दे पर संसद के बाहर INDIA सांसदों का प्रदर्शन(फोटो सौजन्य : INCIndia)

चिदंबरम ने एक टीवी इंटरव्यू में कई सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि क्या प्रधानमंत्री ने इस विषय में कुछ कहा कि आखिर मणिपुर में असली समस्या क्या है? क्या उन्होंने तथ्यों और आंकड़ों को सामने रखा? क्या उन्होंने मणिपुर के हालात के लिए किसी मंत्री या अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया? जब तक मणिपुर का वीडियो वायरल नहीं हुआ था, प्रधानमंत्री तो यही दिखावा करते रहे कि उन्हें मणिपुर के बारे में कुछ पता ही नहीं है। 79 दिनों के बाद जब वीडियो सामने आया तो उन्होंने एक अनौपचारिक सा बयान दे दिया, लेकिन संसद में दिए जाने वाले बयान से इसकी बराबरी नहीं की जा सकती।

इस बीच राज्यसभा चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने सोमवार को राज्यसभा को बताया कि उन्हें मणिपुर पर नियम 176 के तहत चर्चा के लिए सांसदों के 11 नोटिस मिले हैं, और उन्होंने इन नोटिस को स्वीकार कर लिया है और नेता सदन पीयूष गोयल भी इस पर सहमत हैं। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें नियम 267 के तहत चर्चा कराने के लिए 27 नोटिस मिले हैं, जिन्हें या यो अस्वीकार कर दिया गया है या वे विचाराधीन हैं। धनखड़ ने जब नियम 176 के तहत चर्चा चाहने कका नोटिस देने वाले सदस्यों और उनकी पार्टी के नाम तो पढ़े, लेकिन 267 के तहत चर्चा चाहने वाले सदस्यों के सिर्फ नाम ही पढ़े। इससे तृणमूल कांग्रेस के सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने आपत्ति जताई, और हंगामा होने के बाद सदन की कार्यवाही स्थगति कर दी गई।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसी बात को रेखांकित भी किया। उन्होंने कहा कि, “यह शर्म की बात है कि प्रधानमंत्री ऐसे समय में सदन के बाहर बयान दे रहे हैं, जब संसद का सत्र चल रहा है।” खड़गे ने कहा कि यह प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी है कि वे मणिपुर हिंसा पर विस्तार से सदन को बताएं। उन्होंने कहा, “हम राज्यसभा के चेयरमैन और लोकसभा अध्यक्ष से अपील करते हैं कि वे सदन में मणिपुर पर प्रधानमंत्री का बयान कराएं।”

यहां बता देना जरूरी है कि नियम 267 के तहत किसी भी विषय पर लंबी चर्चा होती है जबकि नियम 176 के तहत कुछ देर ही बात हो सकती है। नियम 267 के तहत होने वाली चर्चा तय वक्त से अधिक समय तक हो सकती है और इसके बाद इसपर वोटिंग भी हो सकती है। लेकिन बीजेपी को दोनों सदनों में ऐसी चर्चा स्वीकार नहीं है।

दोनों सदनों के नियमों के मुताबिक राज्यसभा में चेयरमैन और लोकसभा में स्पीकर का अधिकार होता है कि वे चर्चा के किसी भी नोटिस को स्वीकार करें या खारिज कर दें। महत्वपूर्ण विषयों पर कम अवधि की भी चर्चा हो सकती है। पूर्व में भी अहम मुद्दों पर लंबी चर्चा की अनुमति यदा-कदा ही दी जाती रही है।

1990 से 2016 के बीच ऐसे 11 मौके हैं जब नियम 267 के तहत चर्चा हुई है। आखिरी बार इस नियम के तहत 2016 में चर्चा हुई थी। उस समय राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी थे और उन्होंने नोटबंदी पर चर्चा कराना स्वीकार किया था। लेकिन सोमवार को इस नियम के तहत चर्चा से इनकार करते हुए सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि उनके पूर्ववर्ती वेंकेया नायडू ने इस नियम के तहत चर्चा का एक भी नोटिस स्वीकार नहीं किया था। हालांकि उन्होंने माना कि इससे पहले इस नियम के तहत चर्चा होती  रही है।

पूर्व में उपराष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने 1990 से 1992 के बीच चार नोटिस, भैरों सिंह शेखावत ने तीन और हामिद अंसारी ने तीन नोटिस स्वीकार कर चर्चा करवाई थी। लेकिन वर्तमान चेयरमैन का मानना है कि नियम 267 को सदन की कार्यवाही बाधित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा है।

मणिपुर पर संसद में गतिरोध: आखिर सत्ता पक्ष राज्यसभा में नियम 267 के बजाए 176 के तहत क्यों चाहता है चर्चा!

जिन विषयों पर नियम 267 के तहत चर्चा पूर्व में हुई है उनमें 1991 का खाड़ी युद्ध, कथित कोयला घोटाले में सीबीआई की भूमिका, देश के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने पर हमला, कृषि संकट और नोटबंदी जैसे विषय शामिल हैं।

लोकसभा में अल्पावधि और लंबी अवधि की चर्चा के लिए अपने अलग नियम हैं। साथ ही इस बारे में स्थगन प्रस्ताव के भी नियम हैं।

लेकिन प्रश्न यही है कि सभापति को किसी भी विषय पर दीर्घावधि चर्चा कराकर सिर्प एक दिन ‘व्यर्थ’ करना उचित लगता है या फिर निरंतर गतिरोध के चलते पूरे सत्र को व्यर्थ करना, क्योंकि मणिपुर जैसे मुद्दे पर विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ही अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं।

सदन के सभापति को यह भी देखना चाहिए कि मणिपुर जैसे संकट बेहद गंभीर है और इसमें पूर्ण चर्चा के बाद प्रधानमंत्री को बयान देना ही चाहिए। विपक्ष का मानना है कि संकट बेहद गहरा हो चुका है। अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अब तक मणिपुर में कम से कम 160 लोगों की मौत हो चुकी है। मुख्यमंत्री खुद मान चुके हैं कि राज्य में कानून-व्यवस्था बेलगाम हो गई है और बीते तीन माह के दौरान महिलाओं पर उत्पीड़न के सैकड़ों वीडियो सामने आ रहे हैं।

क्या मणिपुर के हालात की पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान या छत्तीसगढ़ में महिला सुरक्षा के हालात से तुलना की जा सकती है?