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यहां हैं 11 फीट ऊंचे और 51 फीट वजनी अमरेश्वर महादेव, जिनके दर्शन के बिना अमरकंटक की यात्रा अधूरी

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मरवाही – सावन मास में शिव भक्ति की बयार बह रही है। हर कोई भगवान भोलेनाथ के दर्शन और पूजन के लिए उतावला है। ऐसे में छत्तीसगढ़ और उसके आसपास स्थित प्राचीन शिव मंदिर आध्यात्मिक रस घोलते हैं। उनमें ही एक हैं, छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश की सीमा पर गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिले में स्थित अमरेश्वर महादेव। करीब 11 फीट ऊंचे और 51 टन वजनी शिवलिंग के दर्शन के बिना अमरकंटक की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है। अमरेश्वर महादेव के दर्शन-पूजन के लिए सावन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। 

ये है शिवलिंग की खासियत 
मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित मां नर्मदा की उद्गम स्थली अमरकंटक ‘शैव क्षेत्र’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसी क्षेत्र में स्थित है अमरेश्वर महादेव मंदिर। जहां पहुंचने के लिए भक्त पेंड्रा रोड से होते हुए जाते हैं। यह मंदिर अमरकंटक मुख्य मंदिर से करीब 15 किमी दूर है। मंदिर प्राचीन स्वयंभू जलेश्वर महादेव मंदिर के नजदीक है। यहां गर्भगृह में भोलेनाथ विराजते हैं। शिवलिंग को ओंकारेश्वर और जलहरी को मध्यप्रदेश के कटनी से लाया गया था। महादेव को अमरेश्वर महालिंगम के नाम से भी पूजा जाता है।

सीढ़ियों पर चढ़कर होता है भगवान का अभिषेक
श्रद्धालुओं को जल चढ़ाने में असुविधा न हो, इसके लिए गर्भ गृह में सीढ़ियों का निर्माण करवाया गया है। श्रद्धालुओं की मानें तो महालिंगम शिवलिंग के जलाभिषेक से मुरादे पूरी होती हैं। अमरेश्वर महादेव को लेकर कहा जाता है कि जैसे काशी में विश्वनाथ के दर्शन, वृंदावन में बांके बिहारी के दर्शन और अयोध्या में श्रीरामलला के दर्शन के बिना इन तीर्थों की यात्रा अपूर्ण मानी जाती है। वैसे ही श्री अमरेश्वर महादेव के दर्शन के बिना अमरकंटक यात्रा पूरी नहीं है। मंदिर के द्वार पर विशालकाय नंदी भी विराजमान हैं।