मंदिर आंदोलन से चर्चा में आईं उमा भारती ने 2003 में दिग्विजय सिंह को सत्ता से बेदखल कर दिया था। तब उनकी गिनती बीजेपी के महत्वपूर्ण युवा चेहरों में होने लगी थी, लेकिन उनके अनप्रेडिक्टेबल व्यवहार ने सियासत में उनके पैरों को पीछे खींच लिया। एक बार तो उन्होंने गोविंदाचार्य के शादी के प्रस्ताव की सार्वजनिक मंच से चर्चा कर दी थी। इससे बीजेपी और आरएसएस में हड़कंप मच गया था।
भोपाल – उमा भारती अनप्रेडिक्टेबल हैं। सियासत हो या निजी जीवन, वे कब क्या कर दें, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। वे एक दिन शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलती हैं और अगले दिन बड़ा भाई बताकर उनके गले लग जाती हैं। 2003 में जब वे मध्य प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं, तब भी उनका यही रवैया था। वे कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने पालतू कुत्ते को लेकर पहुंच जाती थीं तो कभी एक फैक्स से अपने पांच समर्थकों को मंत्री का दर्जा दे देती थीं। हद तो तब हो गई जब उन्होंने भरी सभा में अपनी शादी के प्रस्ताव का किस्सा सुना दिया था। उन्हें कथित रूप से शादी का प्रस्ताव देने वाले गोविंदाचार्य भी इस सभा में मौजूद थे। उमा भारती के इस कदम से बीजेपी से लेकर आरएसएस तक में खलबली मच गई थी। अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को तो जैसे सांप सूंघ गया था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस पर क्या प्रतिक्रिया दें।
पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में निजी संबंधों की चर्चा
बात 30 जून, 2004 की है। उस दिन मध्य प्रदेश के नए राज्यपाल बलराम जाखड़ ने पदभार संभाला था। उनके शपथ ग्रहण समारोह के ठीक बाद भोपाल के रविंद्र भवन में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम था। इसमें उमा भारती के अलावा तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कैलाश जोशी, संगठन मंत्री कप्तान सिंह सोलंकी, गोविंदाचार्य और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी उपस्थित थे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उमा भारती ने अचानक अपने और गोविंदाचार्य के निजी संबंधों पर बोलना शुरू कर दिया।
उमा के भाई ने खारिज कर दिया गोविंदाचार्य का प्रस्ताव
पूरा हॉल सन्न रह गया जब उमा भारती ने कहा कि 1991 के लोकसभा चुनावों के बाद गोविंदाचार्य ने उनसे शादी करने की इच्छा जताई थी। गोविंदाचार्य ने शादी का प्रस्ताव दिया तो उमा ने अपने भाई स्वामी प्रसाद लोधी को यह बात बताई। स्वामी लोधी ने प्रस्ताव को तत्काल खारिज कर दिया। उमा ने आगे बताया कि इस घटना के एक साल बाद नवंबर, 1992 में 31 वर्ष की उम्र में उन्होंने संन्यास ले लिया। संन्यास की तारीख उनके गुरु ने 1986 में ही तय कर दी थी। खास बात यह है कि उन दिनों गोविंदाचार्य अक्सर भोपाल आते थे और राज्य सरकार के अघोषित सलाहकार भी थे।
एक घटना से बदल गया पार्टी का रवैया
उमा भारती के इस भाषण से हंगामा मच गया। आरएसएस के भीतर तो मानो हड़कंप मच गया। उनका यह भाषण आरएसएस की संस्कृति के खिलाफ था। बीजेपी हाईकमान भी सदमे में था। सबने यह मान लिया कि उमा वास्तव में कुछ भी कर सकती हैं। इसके बाद से उनको लेकर पार्टी हाईकमान का रवैया बदल गया। चही कारण था कि कुछ महीने बाद जब तिरंगा प्रकरण में उमा भारती को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, तब सुषमा स्वराज का एक बयान काफी चर्चा में रहा था। सुषमा ने कहा था- इट वाज अ गुड रिडेंस। यानी इसी बहाने पार्टी को उमा भारती से मुक्ति मिली।NBT से साभार