मुंबई – अजित पवार ने कहा कि नौकरीपेशा लोग 58 साल में रिटायर हो जाते हैं। आईपीएस-आईएएस 60 साल में रिटायर होते हैं। नेता 75 की उम्र में रिटायर हो जाते हैं। आडवाणी-मुरली मनोहर जोशी भी रिटायर हुए थे। आपकी उम्र ज्यादा हो गई है। आप रिटायर होंगे या नहीं? आप कभी रुकेंगे या नहीं? साहेब बोले कि सुप्रिया को अध्यक्ष बनाओ। हम तैयार हो गए। फिर उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया। आपको जब इस्तीफा वापस ही लेना था तो दिया ही क्यों? मैं झूठ नहीं बोलता। झूठ बोला तो पवार की औलाद नहीं कहलाऊंगा। मुझे लगता है कि हमारे वरिष्ठों को आराम करना चाहिए। जिद नहीं करनी चाहिए।
अजित पवार ने पटना में विपक्षी दलों की बैठक पर भी तंज कसा। उन्होंने कहा कि दिल्ली और पंजाब जिनके पास है, वो दोनों मुख्यमंत्री वहां बैठे थे। वहां कुछ न कुछ बात बिगड़ी, वो निकल गए। स्टालिन खाने के लिए भी नहीं रुके। ये तीनों मुख्यमंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए भी नहीं रुके। …ऐसे देश चलेगा नहीं। अतीत में भी हमने देखा कि कई प्रधानमंत्री आए, लेकिन अब 2024 में भी मोदी साहब ही जीतकर आएंगे। जब देश में मोदी के अलावा कोई और विकल्प नहीं है तो उन्हें समर्थन देने में क्या बुराई है।
‘पहले भी भाजपा को समर्थन की बात हुई’
अजित पवार ने कहा कि 2017 में कुछ अलग करने का प्रयास हुआ था। उससे पहले 2014 में हमें प्रफुल्ल पटेल ने बताया कि हम बाहर से भाजपा को समर्थन देंगे। हम शांत बैठे क्योंकि हमारे नेता का निर्णय था। देवेंद्र फडणवीस मुख्यममंत्री बने तो हमें बताया गया कि शपथ विधि कार्यक्रम में हमें हाजिर रहना है। हम वहां गए। वहां प्रधानमंत्री मिले। उन्होंने हमसे हालचाल जाना। जब भाजपा के साथ नहीं जाना था तो हमें वहां क्यों भेजा गया था?
‘2019 में पांच बार बैठकें हुईं, उद्धव से कहा था- कुछ तो अलग हो रहा है’
अजित ने कहा कि 2019 के चुनाव के बाद एक उद्योगपति के घर चर्चा हुई। पांच बार बैठकें हुईं। मुझे बताया गया कि कहीं कुछ बोलना नहीं है। उसके बाद अचानक सब बदल गया। हमें बताया गया कि हम शिवसेना के साथ जाएंगे। 2017 में साहेब बोले कि शिवसेना जातिवादी है इसलिए उनके साथ नहीं जाना। 2019 में तो हम शिवसेना के साथ सत्ता में आ गए। तब शिवसेना नहीं चल रही थी, अब शिवसेना चल गई? जब हम सरकार में थे तो शिंदे ने अलग भूमिका ली। हमने हमारे प्रमुखों को बताया कि कुछ तो अलग हो रहा है। उद्धव ठाकरे को बताया कि कुछ तो हो रहा है, लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया। जब एकनाथ शिंदे ने अलग होने का फैसला लिया और गुवाहाटी चले गए, तब हमने 51 विधायकों के साथ भाजपा को समर्थन देने का प्रस्ताव दिया, लेकिन वरिष्ठों ने इस पर फैसला नहीं लिया।