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पीएम मोदी ने समान नागरिक संहिता लागू करने की वकालत की, जानें इसके पक्ष और विपक्ष में किसका क्या तर्क?

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 पीएम मोदी ने मंगलवार को एक कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता को लागू करने पर जोर दिया। पीएम के इस बयान पर विरोधी दलों कांग्रेस, डीएमके, एआईएमआईएम ने भाजपा सरकार को घेरा। इससे पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और आदिवासी समन्वय समिति जैसे संगठनों ने यूसीसी लागू करने पर सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए और कहा कि इससे उनकी संस्कृति को खतरा को सकता है।

नई दिल्ली – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में समान नागरिक संहिता (UCC) की वकालत करके देश में एक बार फिर इस मुद्दे पर बहस छेड़ दी है। भोपाल में पार्टी के बूथ कार्यकर्ताओं की बैठक में पीएम मोदी ने कहा कि दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा। पीएम के इस बयान के बाद सियासत शुरू हो गई है। कांग्रेस समेत कई दलों ने इस पर सवाल खड़े किए हैं। वहीं, केंद्र सरकार के मंत्रियों ने समान नागरिक संहिता को लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। 

देश में समान नागरिक संहिता चर्चा का विषय बनी हुई है। दो सप्ताह पहले ही विधि आयोग ने सार्वजनिक व धार्मिक संगठनों से इस मुद्दे पर राय मांगी थी। इसके लिए 30 दिन का वक्त दिया गया है। इस बीच, प्रधानमंत्री मोदी के बयान ने इस मुद्दे को और चर्चा में ला दिया। आखिर प्रधानमंत्री ने UCC पर कहा क्या है? समान नागरिक संहिता क्या है? इसके पक्ष और विपक्ष में क्या बहस हो रही है? आइए जानते हैं…

PM Modi pitches for implementation of Uniform Civil Code, know whose arguments are in favor and against it

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा बात करते हुए

पीएम मोदी ने UCC को लेकर क्या कहा था?
पीएम मोदी ने मंगलवार को भोपाल में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि UCC पर विपक्षी दल लोगों को भड़का रहे हैं। एक ही घर में दो कानून कैसे हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट भी बार-बार कह चुका है कि UCC लाओ, लेकिन विपक्षी दल वोट बैंक के लिए इसका विरोध कर रहे हैं। UCC का जिक्र संविधान में भी किया गया है।

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समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता क्या है?
समान नागरिक संहिता यानी UCC का अर्थ है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मों का एक कानून होगा। शादी, तलाक, गोद लेने और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। 

यह मुद्दा कई दशकों से राजनीतिक बहस के केंद्र में रहा है। UCC सत्ताधारी भाजपा के लिए जनसंघ के जमाने से प्राथमिकता वाला एजेंडा रहा है। भाजपा सत्ता में आने पर UCC को लागू करने का वादा करती रही है और यह मुद्दा उसके 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र का भी हिस्सा था।

इसके पक्ष और विपक्ष में क्या बहस हो रही है?
UCC लागू होने पर हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून, विशेष विवाह अधिनियम जैसे कानूनों की जगह लेगा। समान नागरिक कानून तब सभी नागरिकों पर लागू होगा चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। इसके समर्थकों का तर्क है कि यह लैंगिक समानता की बढ़ावा देने, धर्म के आधार पर भेदभाव की कम करने और कानूनी प्रणाली की सरल बनाने में मदद करेगा। वहीं, दूसरी ओर विरोधियों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और व्यक्तिगत कानूनों को प्रत्येक धार्मिक समुदाय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।

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असदुद्दीन ओवैसी 

इसके विरोधियों के क्या तर्क है?
कई राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठन UCC लागू होने का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने एक बयान में कहा कि पीएम मोदी को पहले देश में गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी के बारे में जवाब देना चाहिए। वह मणिपुर मुद्दे पर कभी नहीं बोलते। पूरा राज्य जल रहा है। वह सिर्फ इन सभी मुद्दों से लोगों का ध्यान भटका रहे हैं। 

अन्य विरोधी दल डीएमके ने कहा कि सभी जातियों के लोगों को मंदिरों में प्रार्थना करने की अनुमति होनी चाहिए। अनुसूचित जाति और जनजाति सहित देश के प्रत्येक व्यक्ति को देश के किसी भी मंदिर में पूजा करने की अनुमति होनी चाहिए। डीएमके के टीकेएस एलंगोवन ने कहा कि हम UCC इसलिए नहीं चाहते क्योंकि संविधान ने हर धर्म को सुरक्षा दी है।

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पीएम मोदी के बयान पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत के प्रधानमंत्री भारत की विविधता और इसके बहुलवाद को एक समस्या मानते हैं। इसलिए, वह ऐसी बातें कहते हैं… क्या आप UCC के नाम पर देश के बहुलवाद और विविधता को छीन लेंगे?… जब वह UCC की बात करते हैं, तो वह हिंदू नागरिक संहिता की बात कर रहे हैं…मैं उन्हें चुनौती देता हूं कि क्या वे हिंदू अविभाजित परिवार को खत्म कर सकते हैं?…जाइए और पंजाब में सिखों को UCC के बारे में बताइए, देखिए वहां क्या प्रतिक्रिया होती है…”

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बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य

राजनीतिक दलों के अलावा कौन विरोध कर रहा?
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की मंगलवार देर रात बैठक हुई जो कि करीब तीन घंटे तक चली। ऑनलाइन बैठक में संगठन के पदाधिकारी और अन्य बातों के अलावा विधि आयोग के सामने अपने विचार अधिक मजबूत तरीके से प्रस्तुत करने पर सहमत हुए। बैठक में विधि आयोग को सौंपे जाने वाले दस्तावेजों को भी अंतिम रूप दिया गया। 

बोर्ड से जुड़े मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा, ‘बोर्ड समान नागरिक संहिता का पुरजोर विरोध करेगा। हम विधि आयोग के सामने अपनी बात और मजबूती से रखकर सरकार के प्रस्तावित कदम का मुकाबला करने की रणनीति बना रहे हैं। पिछले कई साल से राजनेता चुनाव से ठीक पहले समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठाते रहे हैं। इस बार भी यह मुद्दा 2024 चुनाव से पहले सामने आया है।’

इससे पहले झारखंड में रविवार को 30 से अधिक आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधि समान नागरिक संहिता (UCC) पर चर्चा के लिए एकत्रित हुए। बैठक में फैसला हुआ कि वे विधि आयोग से समान नागरिक संहिता (UCC) के विचार को वापस लेने का आग्रह करेंगे। 

आदिवासी समन्वय समिति (एएसएस) के बैनर तले इकठ्ठे हुए आदिवासी संगठनों ने इस बात पर गहरा संदेह व्यक्त किया कि UCC कई जनजातीय प्रथागत कानूनों और अधिकारों को कमजोर कर सकता है। भारत के 22वें विधि आयोग ने 14 जून को UCC पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों से नए सुझाव मांगे हैं।

 बैठक में कहा गया कि वे ऐसे किसी भी कानून को अनुमति नहीं देंगे जो आदिवासियों से जमीन छीन ले। साथ ही कहा गया कि हमारे पारंपरिक कानूनों के अनुसार, महिलाओं को शादी के बाद पैतृक भूमि का अधिकार नहीं दिया जाता है। UCC के बाद, यह कानून कमजोर हो सकता है। 

UCC पर केंद्र का क्या रुख है?
केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने मंगलवार को कहा कि देश में समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए ताकि महिलाओं को घरों में वह स्थान मिले जिसकी वे हकदार हैं। उन्होंने कहा, ‘एक देश में दो कानून नहीं हो सकते।’

इससे पहले, केंद्र ने पिछले साल समान नागरिक संहिता पर उच्चतम न्यायालय में अपने हलफनामे में कहा था कि विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों के लोग अलग-अलग संपत्ति और वैवाहिक कानूनों का पालन करते हैं जो ‘देश की एकता के खिलाफ’ है।

अक्टूबर 2022 में एक याचिका के जवाब में दायर हलफनामे में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय ने कहा था कि अनुच्छेद 44 (UCC) संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के उद्देश्य को मजबूत करता है।  

मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में कहा था कि विषय वस्तु के महत्व और इसमें शामिल संवेदनशीलता को देखते हुए विभिन्न समुदायों को नियंत्रित करने वाले विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के प्रावधानों के गहन अध्ययन की आवश्यकता है। इसके साथ ही केंद्र ने भारत के विधि आयोग से UCC से संबंधित मुद्दे की जांच करने और उनकी सिफारिश करने का अनुरोध किया था।अमर उजाला से