मंदिर प्रबंधन के मुताबिक इस साल अंबुवासी मेले के लिए मंदिर का दरवाजा 22 जून को बंद हो जाएगा। साथ ही रात में 9 बजकर 27 मिनट और 54 सेकेंड पर प्रवृति शुरू होगी और 26 जून की सुबह 7 बजकर 51 मिनट और 58 सेकेंड पर निवृति होगी।
गुवाहाटी – विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ कामाख्या धाम में आज से अंबुवासी मेला शुरू होने जा रहा है। इस दौरान धाम के कपाट बंद कर दिए जाएंगे। मंदिर के कपाट 26 जून को प्रसादम वितरण के बाद खोले जाएंगे। इसके बाद मां के दर्शन हो पाएंगे। इस बार भी लाखों श्रद्धालुओं के के साथ-साथ देश और दुनिया से तंत्र की साधाना करने वाले साधक और साधु पहुंच चुके हैं। इसे लेकर चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। सुरक्षा के लिए दो हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों को लगाया जा रहा है। देश और दुनिया से आने वाले भक्तों, संतो, साधुओं और स्थानीय लोगों को किसी तरह की परेशानी नहीं हो इसके लिए महानगर प्रशासन ने भी कमर कस ली है।
मां हो जाती हैं रजस्वला, तीन दिन बंद रहेंगे कपाट
देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक है कामख्या देवी शक्तिपीठ। मान्यता है कि जब सुदर्शन चक्र से कटकर देवी सती के अंग भूमि पर गिरे थे तब योनी भाग यहां गिरा था। यही वजह है कि इसे कामक्षेत्र, कामरूप यानी कामदेव का क्षेत्र भी कहा जाता है। जिस स्थान पर देवी सती का योनी भाग गिरा था उस स्थान (नीलाचल पहाड़, जो गुवाहाटी से करीब 14 किलोमीटर दूर है) पर विश्व प्रसिद्ध कामख्या देवी का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को तंत्र साधना का प्रमुख स्थान माना जाता है। हर वर्ष देश और दुनिया से तंत्र-मंत्र साधक अंबुवासी मेले में आते हैं। मां तीन दिनों के लिए रजस्वला हो जाती हैं, इसलिए इस दौरान मां के दर्शन नहीं होते। मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। यह मेला इस बार आज से शुरू हो रहा है।
इस बार प्रवृत्ति रात नौ बजे शुरू होगी
मंदिर प्रबंधन के मुताबिक इस साल अंबुवासी मेले के लिए मंदिर का दरवाजा 22 जून को बंद हो जाएगा। साथ ही रात में 9 बजकर 27 मिनट और 54 सेकेंड पर प्रवृति शुरू होगी और 26 जून की सुबह 7 बजकर 51 मिनट और 58 सेकेंड पर निवृति होगी। इस दौरान अंबुवासी मेले का आयोजन किया जाएगा। 26 जून को ही देवी के पूजा स्नान के बाद मंदिर के द्वार खोले जाएंगे।
कैसे पड़ा अंबुवासी मेले का नाम
भक्तों को प्रसाद के रूप में कपड़ा दिया जाता है। इसे अंबुवासी कहते हैं। इसी कारण इस मेले का नाम अंबुवासी मेला कहा जाता है। मान्यता के मुताबिक मां (देवी) के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल होता है। कहा जाता है कि जिस भी भक्त को यह वस्त्र मिलता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाता हैं। हर साल जून के महीने में यह मेला लगता है।
नहीं जोते जाएंगे खेत, नहीं होगी पूजा
आज से किसान खेतों में कोई काम नहीं करेंगे। चार दिन तक हल नहीं चलेंगे, खेत जोते नहीं जाएंगे। बगीचे में किसी भी तरह के फल या सब्जी तोड़ी नहीं जाएंगे। बाजार में वही सब्जी आएगी, जो पहले तोड़ी गई है। इस दौरान घरों और मंदिरों में पूजा नहीं की जाती। कोई भी धार्मिक कार्य नहीं होंगे, केवल तपस्या की जा सकती है। रात नौ बजे से नीलाचल की पहाड़ियों में किसी भी प्रकार के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी जाएगी।
उमानंद के बिना दर्शन अधूरा
देवी के मंदिर के पास ही ब्रह्मपुत्र नदी के बीचो-बीच उमानंद भैरव का भव्य मंदिर है। मान्यता है कि इनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है। इस मंदिर की प्रसिद्ध इसकी वास्तुशिल्प के कारण भी है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर को किसी इंसान ने नहीं बनाया, बल्कि यह गर्भ से निकला है।